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________________ 13. त्रिकासगंज हिंद (2) 14. भात्मा 15. सविस्वमाया (?), 16. पुपरीक, 11. क्रिया स्थान, 18. पाहारक परिणाम 19. प्रत्यास्मान 20 अनगार मुकाति, 21. श्रुत, 22 अर्थ, 23. मालन्दा । म भन्यपनों में कु सीसामी अवस्य विलाई महीं देती जिसका उल्लेख उपयुक्त ग्रंथों में न किया गया हो। बसमाव में सबसे प्रस्तुत प्रय में कुछ परिवर्तन के साथ ये मध्ययन संकलित किये मो . सूत्रकृताल के संकलन के सन्दर्भ में किसी व्यक्ति-विक्षेप के नाम का उल्लेख तो यहां नहीं मिलता पर इतना निश्चित है कि उसका संकलन परम्परा का प्रनुसरण कर स्थविरों ने प्रश्नोत्तर गैली का माश्रय लेकर लगभग 5 बीमतों में किया है। सूत्रकृतांग भी दो श्रुत स्कन्धों में विभाजित है। प्रथम श्रुत स्कन्ध में सोसाइ अध्ययन है-समय, वैतालिक, उपसर्ग, स्त्रीपरिज्ञा, नरक, विभक्ति, वीरस्तुति, कुचील, वीर्य, धर्म, समाधि, मार्ग, समवशरण, याथातथ्य, ग्रंथ, यमकीय अथवा भावानीम, और गाथा । द्वितीय श्रुतस्कन्ध में सात प्रध्ययन हैं-घुग्रीक, क्रिया स्थान, माहारपरिज्ञा, प्रत्याख्यान क्रिया, अनगारश्रुत, प्रादकीय, और नालन्दीय । इन अध्ययनों मे जैनेतर दर्शनों की प्राचार-विचार की मासांसा करते हुए अनाचार विचार को प्रस्थापित किया गया है। 3. ठाणांग यह तृतीय अंग है । इसमे संख्याक्रम से तस्व पर विचार किया गया है। इसमें दस स्थान और इक्कीस उद्देश्य हैं। 783 गय सूत्र और 169 पछ सूत्र है। विषय सामग्री के देखने से यह स्पष्ट प्राभास होता है कि इसकी रचना काफी बाद में हुई है। उदाहरण तौर पर सप्तनिन्हवों में दिगम्बर सम्प्रदाय का कोई उल्लेख नहीं। इसी तरह महावीर निर्वाण के लगभग 500 वर्ष बाद जिन गणों की उत्पति हुई उसका भी इसमें उल्लेख है । दस दशा ग्रंथों का तथा उपांगों का भी उल्लेख इसी प्रकार का है। इन सबके बावजूद यह ग्रंथ स्व-पर समय की अच्छी जानकारी प्रस्तुत करता है। 4. समवायांग ठाणांग की शैली पर ही समवायांग लिखा गया है। तास्वार्थवातिक और षट्सण्डागम के अनुसार इसमें सब पदार्थों के समवाय का विचार किया गया है। नन्दिसूत्र के अनुसार इसमें एक से लेकर सौ तक की संख्या वाले पदार्थों का प्रदर्भाव है। यह ग्रंथ भी उत्तरकालीन है । इसमें देवर्षिणि के संकलन के बाद भी कुछ 1. भिम ति तिदिना बंधणं परिजालिया। किमाह संपणे वीरो, किया बाई विनिम-18-19..
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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