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________________ विचार प्रस्तुत किये । दोनों संस्कृतियों में परस्पर विरोध इतना बढ़ा कि किसी भी , सीकर को बाह्मलकुल में उत्पन्न होमा असम्भव कर दिया और क्षत्रिय कुल को ही विशुद्ध कुल मान लिया। इसी कुल में तीर्थंकर चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव मावि महापुरुषों को जम्म लेना उचित बतलाया। इतना ही नहीं, महावीर को पहले ब्राह्मणकुल में उत्पन्न देवानन्दा के गर्भ में धारण कराया और फिर उसे मशुद्ध पौर अयोग्य बताकर भत्रियाणी त्रिशला के गर्भ में पहुंचाया। यह सब कार्य इन्द्र ने हरणेगमेषी देव के द्वारा करवाया। माचाराय सूत्र मादि ग्रन्थों में तो यह भी विस्तार से बताया गया है कि हरणंगमेषी ने गर्म परिवर्तन किस प्रकार से किया। यह सब निश्चित ही ब्राह्मण जाति की अपेक्षा क्षत्रिय जाति को श्रेष्ठ बताने के लिए किया गया है। पाज का विज्ञान गर्भ परिवर्तन कराने में सक्षम भले ही हो जाय परन्तु माज से लगभग पच्चीस सौ वर्ष पहले का विज्ञान इतना उन्नत भौर समृद्ध नहीं था और फिर यह तो किसी मानव ने नहीं बल्कि देव ने किया है। इस घटना से यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जनधर्म प्रमुखतः क्षत्रियों का धर्म बन दिया गया था। कहा जाता है, तीर्थंकर के गर्भावतरण के छः मास पूर्व से ही देवगण के माता-पिता के राजप्रासाद पर रस्नो की दृष्टि करते हैं। यह रत्नष्टि धनसम्पत्ति की प्रतीक हो सकती है। सभव है, राज-महाराजे प्रथवा महासामंतों को ऐसे समय अपने माधीन रहने वाले कर्मचारियों से तरह-तरह के उपहार मिला करते हों। इन्द्र सबःजात बालक को सुमेरुपर्वत पर ले जाकर स्नान कराता है । यह क्रिया बालक के जन्म के तुरन्त बाद स्नान क्रिया का चामत्कारिक वर्णन होना चाहिए। महावीर के जन्म-महोत्सव का जो वर्णन मिलता है वह एक साधारण जन्म महोत्सव का दहद स होगा। बाल्यावस्था में भी इसी प्रकार की अनेक चमत्कार से भरी हुई घटनामों का उल्लेख मिलता है। विषधर सर्प का रूप धारण कर परीक्षा के निमित देव का मामा, शिक्षा ग्रहण के समय चमत्कारक बुद्धि की अभिव्यक्ति का कारण मूलतः बदामोर मक्ति रहा होगा । इसके बाद भ० महावीर के जीवन की घटनामों का कोई विशेष उल्लेख नहीं मिलता। जो भी है, प्रायः चमत्कारों से भरे हुए है। साधक इहावीर ने महाभिनिष्क्रमण करते ही यह अभिग्रह किया कि वे बेड की ममता को छोड़कर सभी प्रकार का उपद्रव सममान पूर्वक सहन 1. कल्पसून, 91 2. मादिपुराण, 13,84%B परम परिस, 3,61
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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