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________________ 124 प्राययावरण का निर्माण कर स्वयं को उसमें बाद कर दिए। के का और आधुनिक शिक्षित महिलाबों की भी पुरानी पीढी के पारिवारिक के प्रति सम्मानास्पद भाव रखकर अपने भावको परेवा भी प्रयत्न करना चाहिए। इस प्रकार दोनों पीकियों के द्वारा समदृष्टिकोण अपनाने से महिलाएं परिवार और समाज के विघटन को बचा सकती है। पारिवारिक विघटन में धाविक विसंगति भी एक कारण होत है। विक्षित महिलाएं सुरक्षा जैसी बढ़ती मंहगाई के इस युग में परिवार के सदस्यों को शैक्षणिक जैसे उत्तम प्रकार के क्षेत्रों में सर्विस करके भाषिक सहयोग भी दे सकती हैं । पर यह तथ्य भी यहाँ पुष्ट है कि कतिपय शिक्षित महिलाएं, विशेषत: नौकरी-पेशा वाजी, पारिवारिक विटन में कारणभूत बन जाती हैं। इस कथ्य की पृष्ठभूमि की ओर यदि हम दृष्टिपात करें तो यह पायेंगे कि जो पुरुष या महिलाएं म शिक्षित रहती हैं, उनमें ज्ञान की गम्भीरता का मामास न होने से महं मन्यता छा जाती है । पर जो महिलाएं पूर्णतया शिक्षित रहती हूँ और निरन्तर अपने को आगे बढ़ाने में प्रयत्नशील रहती हैं, उनमें प्रायः प्रभिमान की भावना नहीं रहती । ऐसी ही महिलाएं पार्थिक सहयोग प्रदान कर अपने परिवारों को समायोजित कर सकती हैं । नई पीढी भौतिक चकाचौध में गुमराह हो जाती है। उसे अपने प्रादर्शमयी जीवन की प्रस्तुति के माध्यम से बचाया जा सकता है। इसके लिए बदलते मानव गुरुयों के अनुकूल घरेलु वातावरण को प्रस्तुत करना प्रावश्यक होगा । यदि परिस्थितियों से जूझने की क्षमता, यं ओर सहनबीलता असे सहज स्वाभाविक गुण उनमें पुनर्जीवित हो जायें तो परिवार भलीभांति समवेष्ठित बने रह सकते हैं । ऐसी नारी जिनसेनाचार्य के सब्दों में उल्लेखनीय बन जाती है विद्यावान, पुरुषो लोके सम्मुति माति कोमिदैः । नारी न सहती जसे, स्त्री सृष्टेरग्रिमं पदम् ॥ arcaritreat जीवन का सौन्दर्य है । धार्मिक और सामाजिक कर्त्तव्य उसके सुगन्धित पुष्प है। अधिकार में पिरोयी हुई ऐसी ममता उसके गले की माता है । इसलिए विशा के साथ ऐसा धार्मिक वातावरण यावश्यक है जिसमें कृत्रिमया, खलकपट, मागाजाल की युक्ता न हो । शुद्ध भोजन चोर प्राधुनिक व्यंजन यदि घर में ही पका दिये जायें तो होसिन से भी पारिवारिक सदस्यों को बचाकर उनके स्वास्थ्य की है दो होनी ही की
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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