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________________ को प्राचार्य कुन्दकुन्द बैसे महनीय माध्यात्मिक दार्थनिक सन्त के साथ जोर देने का तात्पर्य यह है कि यह विचार मूल जैन परम्परा से सम्बद्ध न होकर उत्तरकालीन कुचपाताओं की देन है। जो भी हो, यह परम्परा अब दिगम्बर परम्परा के रूप में स्थिर हो पुणे है। सके अनुसार कर्मों की सम्पूर्ण निर्जरा करने के लिए नारी को भवान्तर में पुरुष द ग्रहण करना अनिवार्य है। प्रतः दे सद्भव मोक्षगामी म होकर भवान्तर में मोबगामी होती हैं। इसका कारण यह बताया है कि नारी चंचल स्वभाबी तथा सचिल होती है तथा उसके प्रथम संहनन नहीं होता। दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार स्त्री तीपंकर नहीं हो सकती और सम्यग्दृष्टि जीव स्त्रियों में उत्पन्न नहीं हो सकते। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि बोट संस्कृति भी इस सन्दर्भ में दिगम्बर परम्परा के मषिक समीप है। मानन्द के भाग्रह से भगवान बुद्ध ने महिलामों को मंघ में प्रवेश अवश्य दिया पर उन्हें मुक्ति का विधान नहीं किया जा सका। श्वेताम्बर परम्परा वीतरामता की इस उच्च स्थिति को स्वीकार नहीं करती। उसके अनुसार वीतरागता अन्तरंग का चिह्न है, बहिरंग का नहीं। प्रतः उसकी परमोच्च अवस्था प्राप्त करने के लिए कोई लिंग पादि का बन्धन नहीं माना जा सकता । अत: नारी भी मुक्ति प्राप्त कर सकती है। ललितविस्तरा में सिद्ध के पन्द्रह प्रकारों में स्त्रीलिंग सिख, नपुसकलिंग सिड, गिहिलिंगसिद्ध जैसे प्रकार भी दिये गये हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि यापनीय संघ (जो वि. सं 205 में कल्याण नामकनगर में श्रीकलश नामक श्वेताम्बर साघु द्वारा स्थापित किया गया था) के अनुसार भी स्त्री मुक्ति की प्रषिकारणी है । यहां इस संघ के विषय में अधिक कहना अभिषेय नहीं । पर इतन कम्य अवश्य है कि इसकी कुछ मान्यतायें श्वेताम्मर परम्परा पर माधारित थीं प्रौर नग्नस्व मावि कुछ मान्यतायें दिसम्बर परम्परा का अनुसरण करत पौं । ललित विस्तरा में इसी की मान्यता का उवरण देकर श्वेताम्बर परंपरा को प्रस्तुत किया गया है । तदनुसार नारी को मुक्ति प्राप्त होना असम्भव नहीं कहा जा सकता। - यह परम्परा उस्कृष्ट शुक्ल ध्यान से उत्कृष्ट रौद्र ध्यान की कोई व्याप्ति नहीं मानती। उसके अनुसार जहां मोम प्रापक शुक्ल ध्यान को योग्यता है वहां सप्तम् नरक 1. वर्शनबार
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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