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________________ ६०८ ] [* जैन निवन्ध रत्नावली भाग २ (२३) मूलाचार अ० १ गाथा ३५उदयत्थमगे काले णानोतिय व जिजय म्हि मन्सम्हि । एकम्हि दुअ तिएवा मुहुत कालेय मतं तु ॥ __ मूलाचार प्रदीपक मेविज्ञोऽशन कालोऽन्त्र सत्यज्य घटिकानयं । मध्ये च योगिना भानुदयालमन कालयोः ॥ तस्येवा शनकालस्य मध्ये प्रोत्कृष्टतो जिनः । भिक्षाकाले मतो गेग्यो मुडौंक प्रमाणक ॥३७॥ योगिनां द्वि महत प्रमाणो मध्यमो वचः । जघन्यस्त्रि मुहूर्त नमो मिक्षाकाल उदाहृतः ॥ अर्थ सूर्योदय और सूर्यास्त की तीन-तीन घडी छोडकर मध्य = दोपहर मे जो एक या दो या तीन मुहूर्त तक एक यजु है वह भिक्षाकाल है। इसका तात्पर्य यह है कि तीन-तीन घडी छोडने का काल सामान्य रूप से गृहस्थादि सभी के लिए है यह अशनकाल है इसी मे भोजनादि निर्माण का सभी आरम्भ होता है इस अशनकाल के ठीक मध्य मे= दोपहर मे योगियो का भिक्षा काल है यही एक भक्त काल है इस भिक्षाकाल मे एक मुहर्त लगाली उत्कृष्ट भिक्षाकाल, दोमुहर्त मध्यम, तीन मुहूर्त जघन्य भिक्षाकाल है इसमे गमनागमन भोजन सभी आगया है। इनका चर्चा सागर पृ० ५८-५६ मे गलत अर्थ किया है नालिका-घडी का अर्थ मूहूर्त किया है और भी गलतियां है । (२४) प्रवचनसार की हिन्दी टीका मे मा० ज्ञानसागर जी ने पृ० १४१ पर लिखा है- दिगम्बर शास्त्रो के अतिरिक्त श्वे. मान्य उत्तराध्ययन के २६ वे अध्याय मे लिखा हुआ है,
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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