SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 605
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधुओ की आहारचर्या का समय ] [ ६०७ ( २० ) इन्द्र वामदेव रचित पचसग्रह दीपक ( अनेकात वर्ष २३ पृ० १४८) प्रात श्रीजिनपूजनेन विधिना मध्याह्न कालेऽप्यय । दानेनाद्भुतकीर्तिनो मुनिजनाशीर्वाद" ॥२२३॥ (२१) प्राचीन काल मे सभी लोग प्राय मध्याह्न मे भोजन करते थे यही समय मुनियों के आहार का है क्योकि श्रावक द्वारापेक्षण करके ही भोजन करते थे । श्रावको के मध्याह्न भोजन के प्रमाण निम्नाकित है ( अ ) आदिपुराण पर्व ४१ 8000 ततो मध्यदिनेऽत्र्यर्णे कृत मज्जन सं विधि | तनुस्थिति स निर्वर्त्य निर विक्षत् प्रसाधन ॥१२८॥ अर्थ - तत्पश्चात् दोपहर का समय निकट आनेपर स्नान आदि करके भोजन करते उससे निवृत्त होकर अलकार धारण करते थे । ( ब ) जम्बू सामि चरिउ ( वीर कविकृत ) ज्ञानपीठ, काशी से प्रकाशित पृ० १६० से १६२ मे वताया है कि - जम्बू विवाह के वक्त मध्याह्न में भोजन किया । ( स ) सागार धर्मामृत अ० ६ श्लोक २१ तथा इससे पूर्व एव पश्चात् । (२२) सकलकीर्तिकृत - श्रीपाल चरित परिच्छेद १मध्याह्न स्वगृहे चैत्यालयेषु च जिनार्चन । कृत्वा दानाय वै गेह द्वार पश्यति दानिन ॥३२॥ (इसमे आवक को भी देववन्दना (मामायिक) करके ही आहारदान और भोजन बताया है )
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy