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________________ २८ ] [* जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ धित जलं डालने से ही उनको वेषभूषादि का रूप पलटा हुआ नजर आने लगा था। अत. उक्त पद्य का जो प० लालाराम जी ने "सुगन्धित चूर्ण से प्रतिमा का अभिषेक किया जाना" अर्थ किया है वह ठीक नही है। जैसे इन पण्डितो ने आदि पुराण के "गोदोहै प्लाविता धात्री" वाक्य का दुग्धाभिषेक गलत अर्थ करके लोगो को भ्रम में डाल रखा था जिसका स्पष्टीकरण हमने "जैन निवन्ध रत्नावली' ग्रन्थ मे किया है, उसी तरह की भूलं ये लोग नन्दीश्वर भक्ति पाठ के उक्त श्लोक के अर्थ करने में भी कर रहे है। उक्त पद्य की सस्कृत टीका मे प्रभाचन्द्र ने भी प्रतिमा का चूर्ण-स्नपन करना नही बताया है किन्तु चूर्णस्नपन से इन्द्रो मे विकार विशेष होना लिखा है, इससे प्रभाचन्द्र के विवेचन का भी वही आशय प्रगट होता है जैसा कि आदिपुराण और 'वरागचरित्र मे खुलासा लिखा गया है। अर्थात् इन्द्रो ने प्रतिमा का अभिषेक चूर्ण से नही किया किन्तु चूर्ण को आपस मे एक ने दूसरो पर डाला ऐसा मूल' ग्रन्थकार और टीकाकार दोनो का अभिप्राय साफ प्रगट होता है। यही बात सकलकीति कृत आदिपुराण (लघु) मे इस प्रकार लिखी है 'व्यातुक्षी निर्मला चक्र . जय कोलाहलैः समम् । ' पूरित कलरोः भक्त्या सचूगर्गंधवारिभि ॥२०॥ पार्श्वपुराण में भी इस प्रकार लिखा है - गंधाम्बुस्नपनस्वांत जयनंवादि सत्स्वरः। व्यातुक्षी ममरारचक्र . सचूणर्गंधवारिभिः ॥१४॥
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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