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________________ जैन कर्म सिद्धात ] [ ४६७ प्रश्न · कृषि आदि क्रियाये धान्यादि प्राप्ति की इच्छा से की जाती हैं । करने वाला पाप कमाने के अभिप्राय से उन्हे नहीं करता है । तब कर्ता को पाप का बन्ध भी क्यो माना जावे ? उत्तर . जैसे किसान गेहू का बीज बोता है । उनके साथ भूल से कोदू का कोई बीज बोने में आ जाये तो उस कोदू के वीज से कोदू ही पैदा होगी। नही चाहने से उससे गेहू पैदा नहीं हो सकते हैं। उसी तरह कृषि आदि क्रियाओ का अदृप्टफल पाप कर्मों का बध नही चाहते भी पाप बध होगा ही। जगत मे दुखी जीव बहुत है और सुखी जीव थोडे है । इसका भी कारण यही है कि-जगत मे पाप कार्यो के करने वाले बहुत जीव हैं और पुण्य कार्यों के करने वाले थोडे जीव हैं अगर कृषि आदि 'सावद्यारभ का अदृष्ट-फल पाप वध नही होता तो जगत मे 'प्रचुर मात्रा मे दुखी जीव दिखाई नहीं देते। दूसरी बात यह है कि-समान साधनो के होते हुए भी कृषि व्यापार आदि + करने वालो मे समान फल की प्राप्ति नही देखी जाती है। इसका कारण भी जीवो का अदृष्टफल पुण्य-पाप ही माना जावेगा। कारण के विना कार्य नहीं होता है, यह नियम है । जैसे परमाणुओ से घट बनता है। यहाँ घट कार्य है, परमाणु कारण है। उसी तरह दृष्टफल मे तरतमता देखी जाती है वह भी कार्य है उस का कारण भी पुण्य-पाप ही मानना पडेगा। ___ कर्मों की सिद्धि के लिये तीसरा हेतु यह है कि ससारी जीवो की गमनादि क्रियाये बिना शरीर के नही हो सकती है। जव कोई ससारी जीव पूर्व पर्याय को छोडकर अगली पर्याय मे जावेगा तव पहिले का स्थूल शरीर तो छूट जायेगा और अगला
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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