SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 494
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६६ ] [ * जैन निवन्ध रत्नावली भाग २ करने वाले को एा ही हत्या का दण्ट मिलता है बाकी हत्यायो का दण्ट कैसे मिलेगा? अत मानना पडेगा कि बाकी का दण्ड नरकगनि म मे कमों ने ही मिलता है। कामों को मिद्धि के लिये दमग हेतु यह है कि जैसे चेतन की की हुई कगि आदि कियात्रो का पाल धान्यादि की प्राप्ति है। जो भी नेतन की की हः क्रिया होगी उमका कोई-न-कोई फल जमा होगा। उमी तरह चेतन द्वारा की हुई हिंमा आदि पाप क्रियाओ या दया, दान आदि क्रियामो का फल भी जरूर होना चाहिये वह पान शुभाशुभ कर्मों का जीव के बन्ध मानने रहोबन मकेगा। प्रश्न जमे पि निया का प्रत्यक्ष फल धान्य प्राप्ति है। उमी तरह हिंसा अगत्य आदि का प्रत्यक्ष फल शत्रुता अविश्वास आदि है और दया, दान बादि का प्रत्यक्ष फल मन प्रसन्नता यण प्राप्ति आदि है। इस प्रकार क्रियाओ का फल हम भी मानते हैं । इन दृष्टफनो को छोडकर अदृप्टफल कर्म बन्ध क्यो माना जावे? उत्तर जीवकृत सभी क्रियाओं के दृष्टफल और अदृष्टफल दोनो फल होते है। कृपि आदि मावद्य क्रियाओ का धान्यादि यह दृष्ट फल है और पापकर्म का वन्ध होना यह अदृष्टफल है। इसी तरह दानादि का यश प्राप्ति आदि दृष्टफल है और पुण्यकर्म का बन्ध होना अदृष्टफल है। यदि कृषि आदि सावध क्रियाओ का धान्य प्राप्ति आदि दृष्ट फल ही माना जावे, अदृष्टफल पाप वन्ध नहीं माना जावे तो सावध आरम्भ करने वाले सभी जीवो को मोक्ष हो जायेगा और यह ससार जीवो से शून्य हो जायेगा।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy