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________________ ४७० ] [ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २ आपके स्पष्टीकरण के " जैसा कि रहा भी है" ये वाक्य तो और भी ज्यादा मिथ्या व आपत्तिजनक हैं। आप अपने मन मे चाहे जो अर्थ धारे रहे किन्तु अगर शब्द सयोजन गलत है तो उससे गलत ही अर्थ निकलेगा । शब्द-गठन ऐसा होना चाहिए कि - जिससे कोई दूसरा, विपरीत, भिन्न, व्यर्थ, आपत्तिजनक एव भ्रात अर्थ नही निकल सके तभी वह कथन या लेखन निर्दोष हो सकता है अन्यथा नही । तिलोयपण्णत्ती के अनुवाद मे किस प्रकार से गलतियाँ की गई है इसका एक नमूना और प्रस्तुत करते है सिरिदेवी सुददेवी सव्वाण सणक्कुमारजक्खाणं । रुवाणि मणहराणि रेहति जिणिव पासेसु ॥४८॥ [ अधि० ७ ] अनुवाद -- जिनेन्द्र प्रासादो मे श्रीदेवी श्रुतदेवी और सब सनत्कुमार यक्षो की मनोहर मूर्तिया शोभायमान होती है । समीक्षा - इस अनुवाद मे - " जिनेन्द्र प्रासादो मे" के स्थान मे 'जिनेन्द्र के दोनो पार्श्वभागो मे तथा " ओर सव" की जगह " सर्वाण्ह और " ये वाक्य होने चाहिये प्रमाण के लिये देखो (१) सिरिदेवी सुददेवी सव्वाण्ह सणवकुमार जक्खाणं । रुवाणि य जिण पासे मगल मटठ विह मवि होदि ॥ तिलोसार [नेमिचद्राचार्य ]
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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