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________________ जैन खगोल विज्ञान ] [ 405 5 वी थिये जंबूद्वीप मे है और 10 लवण समुद्र मे है। सूर्य चन्द्र की प्रथम वीथी जवूद्वीप की अन्तिम सीमा से 180 योजन भीतर हैं / और दोनो की आखिर की वीथी समुद्रतट से 330 योजन परे हैं / दोनो का दक्षिण उत्तर का गमन-क्षेत्र कुल 510 योजनो का होता है। यह गमन-क्षेत्र वीथियो की चौडाई और उनके अतरालो को जोडने पर निकलता है। प्रत्येक वीथी की चौडाई सूर्य-चन्द्र के विव प्रमाण है। इस गमन क्षेत्र मे इनके जाने आने को ही दक्षिणायन-उत्तरायन बोलते है। जबूढीप मे दो सूर्य और दो चन्द्रमा हैं। प्रत्येक वीथी मे दो सूर्य घमते है और दो चन्द्रमा घमते हैं। किन्तु चन्द्रमा की वीथी सूर्य की वीथीसे जुदी है / सूर्य से वह 80 योजन ऊपर को है और उसमे भी दो चन्द्रमा मते है प्रत्येक वीथी के घेरे मे एक सूर्य जहा से चलना शुरू करता है वहा तक आने मे उसे 60 मुहूर्त (2 अहोरात्र) लगते है। और इसी काम मे एक चन्द्रमा को 62 233 मुहूर्त लगते है। प्रत्येक अपनी-२ वीथी मे दो सूर्य और दो चन्द्रमा परिभ्रमण करतेहै और वे दोनो बिल्कुल आमने सामने रहकर भ्रमण करते है / जब एक सूर्य या एक चन्द्रमा चलता हुआ किसी एक वीथी के आधे घेरे को पूरा करता है तब हो शेष आधे घेरे को सामने का दूसरा सूर्य या चद्रमा चलकर पूरा कर देता है। जिस स्थान मे आज हम को जो सूर्य उदय होता दिखता है उस स्थान पर वही सर्य पुन' 60 मूहूर्त मे आवेगा किन्तु हमे 30 मुहूर्त मे ही आता हुआ नजर आता है वह सूर्य दूसरा है। जबूद्वीप मे दो सर्यो के उदयास्त की व्याख्या इस प्रकार है जवूद्वीप की एक लाख योजनो की चौडाई के 3 भाग किये जावें / जब अगल बगल के दो भागो मे आमने सामने के दो सूर्या से दिन रहता है तब उसी वक्त बिचले भाग मे पूर्व
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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