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________________ 406 ] [ * जैन निवन्ध रत्नावली भाग 2 पनिम विदेह मे गत होती है। और विचले भाग में आमने गामने के दोनो मृगे पूर्व व पश्चिम विदेह मे दिन रहता है तब अगा वगन दोनो भागो में (जबूद्वीप के दक्षिण और उन भाग में) गन होती है। जब निपधपर्वत पर पूर्व दिशा में सूर्य उदय होना तब उग वक्त जगदीप के दक्षिण भाग में दिन हो जाता है / इमी दक्न मी मर्य का मामने वाला सूर्य नीन पर्वत पर पश्चिम दिशा मे उदय होकर उससे जवहीप के उत्तर भाग मे दिन हो जाता है। तब उस वक्त पूर्व विदेह और पश्चिम विदेह में गमि हो जाती है। जब निपधगिरि के पूर्व जिरे पर उदग होने वाला मूर्य चतकर निपध के पश्चिम शिरे पर मा जाता है तब वह जगदीप के दक्षिण भाग के निये अस्त होकर बहा गान हो जाती है। और उमी मयं का उसी वक्त पश्चिम विदेह मे उदय माना जानार व्हा दिन हो जाता है। तथा इसी तरह जो दुमरा मयं नीलगिरि के पश्चिम शिरे पर उदय हुआ था वह चलकर जब नीलगिरि के पूर्वीय शिरे पर आता है तब वह जद्वीप के उत्तरीय भाग के लिये अस्त होकर वहा भी रात्रि हो जाती है। और उसी मर्य का उमी वक्त पूर्व विदेह मे उदय माना जाकर वहा दिन हो जाता है। यह ध्यान मे रखना कि ऐसा सम रामिदिन के वक्त होता है। पूर्व विदेह मे उदय होने वाला दूसरा मर्य जब नीलगिरि से चल कर निषध पर आता है तो वही दूसग सर्य भरतक्षेत्र मे दूसरे दिन उदय होता है। न कि पूर्व दिन मे भरतमे अस्त होने वाला सूर्य / वह तो भरत मे तीसरे दिन उदय होगा। क्योकि जिस दिन जो सूर्य भरत मे अस्त होता है उस दिन की रात्रि मे वह पश्चिम विदेह मे रहता है। उसके दूसरे दिन वह ऐरावत मे रहता है और दूसरे दिन की रात्रि मे वह पूर्व विदेह मे रहता है। वही सूर्य
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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