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________________ 404 ] [ * जैन निबन्ध रत्नावली भाग 2 से उत्तरोत्तर शीघ्र गति वाले है। किन्तु ग्रहो मे राहु की गति चन्द्रमा से भी कभी-२ धीमी होती है। जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है / यह एक अपवाद नियम है। वर्ना सबसे मद गति चन्द्रमा की है और सबसे तेज गति तारो की है। सग्रहणी सूत्र (श्वेताबर) मे कहा है कि "ग्रहो की गति परस्पर मे न्यूनाधिक है। बुध की गति सभी ग्रहो से मद है। बुध से शुक्र मगलवृहस्पति और शनि इनकी उत्तरोत्तर शीघ्रगति है / " चन्द्रमा, सूर्य और ग्रह ये आज जिस वीथी मे घूम रहे हैं कल वे दूसरी वीथी मे और परसो तीसरी मे, इस प्रकार नित्य ये अलग-२ वीथियो मे घूमा करते हैं। ऐसा भ्रमण अन्य ज्योतिष्को का नहीं है। जिस आकाशमार्ग मे गोलाकार घूमा जाता है / वह वीथी कहलाती है इसी को मडल भी कहते हैं / चन्द्र-सूर्य जव मेरु को बीच मे रखकर उसके इर्दगिर्द एक पूरा गोल चक्कर लगाते है तब वह एक मडल या एक वीथी होता है / फिर दूसरी दफे कुछ आगे बढ कर जब पूरा गोल चक्कर लगाते हैं तब वह दूसरा मडल होता है। इस प्रकार जितने मडल हैं वह उतनी ही बार मेरु के चक्कर लगाता है और कुछ-२ आगे बढता हुआ अगले 2 मडलो मे चलता है / जब वह अन्तिम मडल पर पहुँच जाता है तो उसी क्रम से वापिस फिर पीछे की ओर आते-२ पूर्ववत् उसी प्रथम मडल मे आ जाता है। सूर्य की गमन करने की कुल वीथिये (मडल) 184 है। और चन्द्रमा की 15 वीथिये है। सूर्य की प्रत्येक वीथी मे दो दो योजन का अतराल रहता है तथा चन्द्रमा की प्रत्येक वीथी मे 35 योजनो का अतराल रहता है। सूर्य की 65 वीथिये जम्बूद्वीप मे है और 116 लवण समुद्र मे हैं। तथा चन्द्रमा की
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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