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________________ जैन धर्म श्रेष्ठ क्यो है ? ] जैनमार्गरतोजनो जितक्रोधो जितामय ॥ इसमे भगवान का नाम जैनमार्ग रत, और जैन बताया है । वैशम्पायन सहस्रनाम मे - कालनेमिनिहा वीरः शूर. शौरिजिनेश्वर । यहा भी जिनेश्वर को भगवान् कहा है । दुर्वासा ऋषिकृत महिम्न स्तोत्र मे - [ ३६१ " कर्ताऽर्हन् पुरुषोहरिश्चसविता बुद्ध शिवस्त्वं गुरु ॥ यहा अर्हन्त कहकर इष्टदेव की स्तुति की है । हनुमन्नाटक के मङ्गलाचरण मे - "अर्हन्नित्यथ जैनशासनरता, कर्मेति मीमांसका । सोऽयं वो विदधातु वाछितक्ल त्रैलोक्यनाथ प्रभु "॥ अन्यदेवो के साथ-साथ अर्हन्त से भी जिसे जैन लोग मानते हैं वाछित फल की प्रार्थना की है और उसे तीन लोक का नाथ तक लिखा है । इन सपूर्ण प्रमाणो तथा युक्तियो से जै. धर्म की श्रेष्ठता स्वय सिद्ध होती है । प्रभास पुराण मे - -- "देवताद्रो जिनो नेमि युगादि विमलाचले । ऋषीणामाश्रमादेव मुक्तिमार्गस्य कारणम्" ॥ नेमिजिन को मुक्ति का कारण कहा है । नगर पुराण मे - दशभिर्मोजितः विप्रः यत्फल जायते कृते । मुनेरर्हत्सुभक्तस्य तत्फल जायते कलौ ॥ अर्थ - दस ब्राह्मणो के जिमाने का जो फल कृ-युग मे
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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