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________________ अजैन साहित्य मे जैन उल्लेख [ ३२७ है - "दिगबरो का श्वेताम्बरो के साथ इतना ही भेद है किदि लोग स्त्री का ससर्ग नही करते और श्वे करते है इत्यादि बातो से मोक्ष को प्राप्त होते हैं । यह इनके साधुओ का भेद है" । उर्दू संस्करण मे भी लिखा है - दि श्वे मे इतना ही इखलाफ है कि - दि औरत के नजदीक नही जाते और श्वे जाते हैं ।" ... ] यह श्लोक वास्तव मे सायण माधवाचार्यकृत " सर्व दर्शनसग्रह " ( १३०० ईस्वी सन् ) का है । खेमराज श्री कृष्णदास बम्बई से वि स १६६२ मे प्रकाशित सस्करण मे पृष्ठ ७३ पर यह दवा श्लोक दिया है । उदयनारायणसिंहजी ने इसका अर्थ इस प्रकार किया है: - " अकेला न भोजन करते न स्त्री वो भोगते ऐसा दिगम्बर मोक्ष को पाते हैं यह बडा भेद श्वेताम्बरो के साथ कहा है ।" ये सब अर्थ कितने असत्य और शालीनता से बाहर है यह जैनधर्म से थोड़ा भी परिचय रखने वाले अच्छी तरह जान सकते है | 6 बादके सस्करणोमे इस अर्थ मे थोडा परिवर्तन कर दिया है फिर भी सही अर्थ नही हो पाया है । पूरा सही अर्थ इस प्रकार है - "केबली (अर्हन्त) भोजन नही करते और स्त्री मोक्ष नही प्राप्त करती ऐसा दिगम्बर कहते हैं यही श्वेताम्बरो के साथ इनका महान् भेद है ।" सत्यार्थ प्रकाश मे जो जैन धर्म की आलोचना के लिये एक लम्बा चौडा समुद्देश लिखा है इस एक नमूने से ही उसकी भी असत्यता और अप्रमाणिकता का अच्छी तरह परिचय मिल जाता है ।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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