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________________ ( xx11 ) प० मिलापचन्द जी का स्वर्गवास वैशाख सुदी १० वि. स २०२८ बुधवार (५ मई १६७१ ) मे हो चुका है । आपके स्वर्गवास होने से एक श्रेष्ठ विद्वान् का अभाव हो गया। समाज के समस्त विद्वानो और समाज प्रमुख नेताओ ने "जैन संदेश " पत्र के विशेषाक मे जो ४ मई १६७२ को प्रकाशित हुआ था उसमे शोक संवेदना के समाचार श्रद्धाजलिया संस्मरणात्मकं लेख प्रकट हुये थे यह प० जी के सम्बन्धमे एक सचित्र परिचयात्मक विशेषाक था । प० जी चारो अनुयोगो के विद्वान् थे, विवादग्रस्त विषयो को सुलझाने की उनकी अपनी निराली पद्धति थी । सामने वाले व्यक्ति के हृदय पर वे अपनी अमिट छाप छोड़ते थे । देहली पचकल्याणक प्रतिष्ठा उनके आचार्यत्व मे हुई थी और वहाँ मुझे उनका गहरा परिचय हुआ था । वे विद्वान् तो थे ही सुप्रतिष्ठित प्रतिष्ठाचार्य भी थे अनेक स्थानो पर पंचकल्याणक प्रतिष्ठाये कराईं साथ ही वेदी प्रतिष्ठा, कलशध्वजारोहण अनेक प्रकार के विधि विधान, जैन पद्धति से विवाह आदि भी बहु सख्या मे उनके द्वारा सम्पन्न हुये हैं । "विद्याभूषण" की उपाधि समाज ने उन्हे २०२४ मे दी थी । वे शुद्ध आम्नायी मर्मज्ञ विद्वान् थे । उनके कुछ अप्रकाशित लेख व ग्रंथ हैं जो प्रकाशन योग्य हैं । प्रतिष्ठा शास्त्र पर उनके कुछ शोध पूर्ण लेख अभी भी अप्रकाशित है । समाज के धनी सज्जनो से अनुरोध है कि उनके द्वारा लिखित अमूल्य सामग्री को प्रकाशित कर उसे सामने लावें । उनके सुपुत्र श्री रतनलालजी कटारिया के पास वह सब सामग्री सुरक्षित है | श्री रतनलाल जो भी स्वयं एक निष्णात I
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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