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________________ ( xxiii ) विद्वान् है जैन सदेश के वे यशस्वी सम्पादक व सुलेखक है पाठक उनकी लेखनी से सुपरिचित है। ___ यह निबन्धावली का दूसरा भाग-हम दि जैन संघ मथुरा से प्रकाशित करने मे लेखक के दिवगत होने के १८ वर्षों के बाद सफल हो सके है। इसमे पडितजी के ५५ निबन्ध संगृहीत हैं। इस प्रकाशन मे अपना योगदान देने वाली सस्था श्री दिगम्बर जैन संघ मथुरा के तथा आर्थिक सहयोग देने वाले सज्जनो के आभारी हैं जिनकी नामावली अन्यत्र प्रकाशित है । जगमोहन लाल शास्त्री कुण्डलपुर (दमोह) म०प्र० मायोमयोषधं शास्त्र, शास्त्र पुण्य निबधनम् । चक्षु सर्वगत शास्त्र, शास्त्र सर्वार्थ साधकम् ॥ स्वाध्यायाध्यान मध्यास्ते, ध्यानात्स्वाध्याय मातनोत्। ध्यान स्वाध्याय सपत्या, परमात्मा प्रकाशते ॥ जिणवयण मोसह मिण, विसयसुह विरेयण आमिद भूत। जरमरण वाहिहरण, खयकरण सव्वखुक्खाण ।।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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