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________________ भगवान महावीर तथा अन्यतीर्थंकरो के वश ] [ २२३ 6 लिखा है तथा प० आणाधरजी ने भी अपने प्रतिष्ठासारोद्धार ग्रंथ के अध्याय ४ के श्लो ११ मे तीर्थंकरो के गोत्रो का कथन वरागचरितवत् ही किया है तथा विचारसार प्रकरण (श्वेतावर - ग्रंथ) मे भी ऐसा ही कथन है । किंतु गोत्रो का कथन न त्रिलोकप्रज्ञप्ति में है न पद्मपुराण - हरिवंश पुराण मे । आ दामनदिने पुराणसार संग्रह में महावीर का काश्यपवश लिखा है किन्तु वश का अर्थ यहाँ 'गोत्र' लेना चाहिये। तभी सगति होगी । त्रिलोकप्रज्ञप्ति अधिकार ४ गाथा ५५० मे लिखा है कि "धर्मनाथ, अरनाथ, कु थुनाथ ये तीन कुरुवश मे उत्पन्न हुये । महावीरणाह नाथवश में, पार्श्वनाथ उग्रवश मे मुनिसुव्रतनेमिनाथ हरिवश ( यादवव श ) मे और शेष तीर्थंकर इक्ष्वाकु वश मे उत्पन्न हुये ।” यहाँ शातिनाथ को इक्ष्वाकुवशी लिखा है । जबकि हरिवशपुराण सर्ग ४५ मे कुरुवशी लिखा है । उत्तरपुराण मे शातिनाथ के पिता को काश्यप गोत्री लिखा पर उनके वश का नाम नही लिखा । आचार्य जिनसेनकृत आदिपुराण मे कुरु, उग्र, नाथ, हरि इन चारवंशो की स्थापना भगवान् ऋषभदेव द्वारा बताई है । जैसा कि ऊपर लिखा गया है। इक्ष्वाकु यह उनका खुद का ही वश था। इस प्रकार इन पाच नशो मे तीर्थंकर पैदा हुये है । त्रिलोक प्रज्ञप्ति मे भी ऊपर ये ही ५ वश बताये हैं । प० आशाधर ने भी स्वरचित प्रतिष्ठासारोद्धर के अध्याय ४ श्लो० १० तथा अनगार धर्मामृत पृष्ठ ५७० मे इन्ही पाचव्वशो कर
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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