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________________ २२२ ] [ * जैन निवन्ध रत्नावली भाग २ इन व शो के नाम ऋपभदेव ने ही निश्चित किये थे। श्रेयाशमोमप्रभ राजा कुरुवणी माने गये।" उनी के १३ वे मगं के श्लो १५-१६-१६ मे लिखा है कि "भरत के पुत्र अर्ककीनिने मूर्य व श की स्थापना की तथा बावनी के पुत्र सोमयश ने सोमव श चलाया। इक्ष्वाकुव श - को शाखा म्वरुप इन मूर्यव श-सोमवश में अनेक राजा हये। उय और कुरुवश मे भी अनेक राजा हुये ।" इसी पर्ग के श्लो ३३-३४ मे लिखा है कि समार में सबसे प्रथम इक्ष्वाकु वण उत्पन्न हुआ। फिर सूर्यवश सोमवण हुये तथा उसी समय कुम्वग उग्रवंग जादि वंण भी हये । शीतलनाथ के तीर्थ में हरिवश हुआ।" इसी के पर्व ४५ मे कुरुवग की उत्पत्ति सोमप्रमश्रेयाश राजा से बताते हुये अनेक राजामो की नामावली देकर' गातिनाथ कु युनाथ-अरनाथ तीर्थकरो को कुरुवशियो में' लिखा है। ___ आचार्य गुणभद्रात उत्तरपुराण में "धर्मनाथ कुथुनाय का कुरुनश और काश्यप गोत्र लिखा है । अरनाथ का सोमवशकाश्यप गोत्र और मुनिसुव्रत नेमिनाथ का हरिश काश्यप गोत्र लिखा है।" यहा जो अरनाय का सोमवश लिखा है सो उसका 'भाव यह है कि राजा सोमप्रभ (श्रेयांश के भाई) से कुरुवश की उत्पत्ति हुई । इसलिये यहा कुरुवश को ही सोमवश के नाम से लिखा गया है। वराग चरित सर्ग २७ श्लो ८८ मे भी मुनिसुव्रतनेमिनाथ को गौतमगौत्री और शेप तीर्थकरो को काश्यप गोत्री
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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