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________________ १६८ ] [ * जैन निबन्ध रत्नावली भाग ३ वाद हुये है। बाद में होने का दूमग हेतु यह है कि इन्होने अपने प्रतिष्ठातिलक के मगलाचरण मे इ द्रनंदि आदि कृत प्रतिष्ठाशास्त्रो के अनुसार कथन करने की बात कही है। और इद्रनंदि ने अपनी जिनसहिता मे आशाधरकृत सिद्वभक्तिपाठ को उद्घत किया है । तथा नेमिचद्र ने अपने प्रतिष्ठाग्रथ के १८३ परिच्छेद मे एकसधिसहिता के भी बहुत से श्लोक उद्धृत किये हैं। उधर एक सधि भी अपनी जिनसहिता के २० वें परिच्छेद में इन्द्रनदी का उल्लेख करते है। इन सब उल्लेखों से यही निश्चित होता है कि माशाधर के बाद इन्द्रनदी के बाद एकसधि और एक सधि के बाद नेमिचन्द्र हुए है। प० आशाधर जी वि० स १३०० तक जीवित थे यह नि नि है । अयंपार्य अपने बनाये "जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय" नामक प्रतिष्ठापाठ को वि० स० १३७६ मे पूर्ण करते हुये लिखते है किमैंने यह प्रतिष्ठान थ इन्द्रनर्दी, आशावर, हस्तिमल्ल और एक सधि के कथनो का सार लेकर बनाया हैं। इन्द्रनदि ने स्वरचित सहिता में एक जगह हस्तिमल्ल कर उल्लेख किया । (देखो उसका तीसरा परिच्छेद) किन्तु जनसिद्धातभास्कर भाग ५ किरण १ मे हस्लिमल्लकृत प्रतिष्ठाविधान की प्रशस्ति छपी है उसमे हस्तिमल्ल ने भी इन्द्रनदि का उल्लेख किया है। इससे, हस्तिमल्ल, और इन्द्रनदि दोनो समकालिक सिद्ध होने है। फलितार्थ यह हआ कि हस्तिमाल, इन्द्रनदि और एकसधि ये अतिम मन आशाधर के समय से लेकर वि० स० १३.६ के मध्य मे हुये है।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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