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________________ प्रतिष्ठा तिलक के को नेरिचन्द्र का समय ] [ १६७ जिनच द्रादि विद्वान पुत्र हये । और विजयम ज्योतिष का पडित हुआ जिमका समतभद्र पुत्र साहित्य का विद्वान हआ। तथा नेभिचन्द्र, अभयचन्द्र उपाध्याय के पास पढकर तर्के व्याकरण का ज्ञाता हुआ । नेमिचन्द्र के दो पुत्र हुये- कल्याणनाथ और धर्मशेखर । दोनो ही महा विद्वान हये । नेमिचन्द्र ने सत्यशासन परीक्षा मुख्य प्रकरणादि शास्त्र रचे । राजसभाओ मे प्रतिवादियो को जीत कर जिसने जैनधम की प्रभावना की जिसको राजा द्वारा छत्र, चवर, पालकी भेट मे मिली । और जो स्थिर कदव नगर का रहने वाला है ऐसे नेमिचन्द्र ने अपने मामा ब्रह्मसूरि आदि वन्धुओ के अाग्रह से यह प्रतिष्ठातिलक ग्रथ वनाया है। इस पकार नेमिचन्द्र ने अपनी वेशावली तो विस्तृत लिख दो परन्तु वे किस साल संवत मे हुये यह लिखने को कृपा नही की। यह गृहस्थ थे, इन्होने उक्त प्रतिष्ठान थ आगाधरकृत प्रतिष्ठाशास्त्र को आधार बनाकर लिखा है । यद्यपि इन्होंने आशाधर का कही उल्लेख नही किया है किंतु दोनो मे इतना अधिक साम्य है कि उत्ते देखकर यह निसकोच कहा जा सकता हैं किन अकुरारोपण आदि कुछ विशेष प्रकरणो को छाडकर बाकी सारा का सारा न थ नेमिचन्द्रने आशाधर के ग्र थसे ज्यो का त्यो ले लिया है। सिर्फ दोनो मे शब्द रचना का ही अन्तर है, प्रायः अर्थ इकसार है । दोनो का मिलान करने से यह बात कोई भी ज न सकता है अतः उनके उदाहरण देने की मैं जरूरत नहीं समझता । किन्तु आशाधर प्रतिष्ठापाठ के कितने ही पद्य तो नेमिचन्द्र ने ज्यो के त्यो भी निये है। इससे स्पष्ट प्रकट होता है कि ये नेमिचन्द्र आशाधर के
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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