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________________ राजा श्रेणिक या विम्बसार का थायुष्य काल ] [ १39 ने शरण देकर ज्येष्ठा को गुप्त रूप से अपने पास रक्खा । वही उसके पुत्र पैदा हुआ। पुत्र जन्म के बाद ज्येष्ठा न अपनी गुर्वागी से प्रायश्चित लेकर पुन आर्यिका की दीक्षा ग्रहण कर ली । I 1 i ज्येष्ठा के जो पुत्र हुआ था उसका लालन पालन भी चलना ने ही किया । वह पुत्र बडा उद्दण्ड निकला। एक दिन 'उसकी उद्दण्डता से हैरान होकर चलना के मुख से निकल पड़ा कि "दुष्ट जार जात यहाँ से चला जा' यह सुन उसने अपनी उत्पत्ति चेलना से जॉननी चाही । चेंगना ने सब वृत्तान्त उम को यथावत् 'सुना दिया । सुन कर वह अपने पिता सत्यकिं मुनि के पास जा दीक्षा ले मुनि हो गया । वह नवदीक्षित मुनि ग्यारह अग 'दशपूर्वो का पाठी हो गया और 'रोहिणी आदि पांच सौ महाविद्याओं 'व सात सौं क्षुद्र विद्याओं को भी 'उसे प्राप्ति हो गई । वह विद्या के प्रताप से सिंह का रूप बनाकर उन लोगो को डराने लगा जो लोग सत्यकि मुनि की वन्दनार्थं अति जाते थे। उसकी ऐसी चेष्टा जानकर मत्यकि मुनि ने उसे फटकारा और कहा कि तू स्त्री के निमित्त से एक दिन भ्रष्ट होवेगा । गुरु वाक्य सुनकर सत्यकिं पुत्र ने निश्चय किया कि में ऐसी जगह जाकर तप करू ' जहां स्त्री मात्र का दर्शन भी न हो सके तब मैं कैसे भ्रष्ट होऊंगा ? ऐसा सोचकर 'वह कली पर्वत पर जा पहुंची और वहाँ आतापन योग में स्थित हो गया। वहाँ एक विद्याधर की आठ कन्यायें स्नान करने को आईं। उनकी अनुपम सुन्दरता को देखकर वह उन पर मोहित हो गया । ज्यो हो वे कन्यायें अपने वस्त्राभूषण उतार वापिका के जल से स्नान करने को उसी तब ही उसने t ↓ 4 "P Y
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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