SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ ] [ ★ जंन निबन्ध रत्नावली भाग २ अपनी विद्या के द्वारा उनके वस्त्राभूषणो को मगा लिया। वापिका से निकल कर उन कन्याओ को जब तट पर अपने २ वस्त्राभूषण नहीं मिले तो उ होनें उन मुनि से पूछताछ की। मुनि ने उनसे कहा तुम सब मेरी भार्या बनो तो तुम्हारे वस्त्रादि तुम्हे मिल सकते है । उत्तर मे उन कन्याओ ने कहा कि यह बात तो हमारे माता पिता के आधीन है। वे अगर हमे आपको देना चाहे तो हमारी कोई इकारी नही है । उसने कहा अच्छा तो तुम सब अपने माता पिता को पूछ लो यह कह उसने उनके वस्त्राभूषण दे दिए। उन कन्याओ ने घर पर जा यह बात अपने माता पिता देवदारु को वही । देवदारु ने एक वृद्ध कचुकी को भेजकर सत्यकि पुत्र से कहलवाया कि मेरा भाई विद्युज्जिह्व मुझे राज्य से निकाल आप राजा बन वंठा है । अगर आप उससे मेरा राज्य दिला सको तो मैं ये सब कन्यायें आपको दे सकता है । सत्यकि पुत्र ने ऐसा करना स्वीकार किया और अपनी विद्याओ के बल से उसके भाई विद्युज्जिह्व को मारकर देवदारु को राजा बना दिया । तब देवदारु ने भी अपनी आठो कन्याओ की शादी सात्यकि के साथ कर दो । किन्तु वे सब कन्या ये रतिकर्म के समय उसके शुक्र के तेज को न सह सकने के कारण एक एक करके मर गईं। इसी तरह अन्य भी एक सौ विद्याधर कन्याये मरण को प्राप्त हुईं। आखिर मे एक विद्याधर कन्या ऐसी निकली जो इस काम मे उसका साथ दे सकी । उसके साथ उसने नाना प्रकार के भोग भोगे । फिर इसी सत्यकी पुत्र ( ११ वे रुद्र) ने I आकर भगवान महावीर पर उपसर्ग किया था। t 1 इस ११ वें रुद्र का असली नाम क्या था यह किसी ग्रन्थकार
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy