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________________ ११० ] ★ जैन निवन्ध रत्नावली- भाग २ ऊपर हम लिख आये हैं कि - राजा चेटक की पुत्री ज्येष्ठा कुवारी ही आर्यिका हो गयी थी और राजा सत्यकि जो ज्येष्ठा को चाहता था वह भी मुनि हो गया था। उत्तरपुराण मे इनका इतना ही कथन किया है । किन्तु अन्य जैन कथा ग्रन्थो मे इनका आगे का हाल भी लिखा मिलता है । हरिपेण कथा कोश की कथा न०६७ मे लिखा है कि T एक वार ज्येष्ठा आदि कितनी ही आर्यिकाये आतापन योग मे स्थित उक्त सत्यकि मुनिकी वदनार्थ गई थी । वहाँ से लौट कर पहाड पर से उतरते समय अकस्मातु जन 'वर्षा होने लगी जिससे आर्यिकायें तितरबितर हो गईं। उस वक्त ज्येष्ठा एक गुफा मे प्रवेश कर अपने भीगे कपडे उतारकर निचोड़ने लगी । उसी समय वे सत्यंकि मुनि भी अपना आतापन योग समाप्त कर उसी गुफा मे आ घुसे। वहाँ ज्येष्ठा को खुले अंग देख 'एकात पा मुनि के दिल मे काम 'विकार 'हो उठा। दोनों का सयोग हुआ । ज्येष्ठा के गर्भ रहा । सत्यकि तो इस कुकृत्य का गुरु से प्रायश्वित ले पुन. मुनि हो गये । किन्तु ज्येष्ठा ' सगर्भा थी उसने अपनी गुर्वाणी 'यशस्वती के पास जा 'अपना सव' हाल यथार्थ सुना दिया । गुर्वाणों ने उसे रानी चेलना के यहाँ पहुचा दिया । चेलना [ 1 4 व्र० नेमिदत्तकृत आराधना कथा कोण मे, इस जगह आर्यिकाओ का भगवान महावीर की वदनार्थ जाना लिखा है । वह ठीक नही है । क्योकि इसे दंपत तक तो अभी महावीर ने दीक्षा ही नही ली है । तब उनकी वन्दना की कहना असंगत है । जैसा कि हम आगे बतायेगे । " 1 11 112 । T
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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