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________________ राजाणिक या विम्बमार का आयुष्य काल ] [ १०६ अपं इस प्रकार किया। -मस्य मनमा हतिदनन महति । महतो महावीर.- महति महावीर । (पापो के नाम करने में शूरवीर) पाक्षिनादि प्रतिक्रमण (क्रियाकलार पृ. ७३) में महटि-महावीरेण पदमाणेग महाकस्सयेण" पाठ आता है इसमे भी 'महति महावीर' यह एक नाम ही सूचित किया है। महदि प्राकृत पा सस्कृत मे माति और महाति दोनों रूप पनते हैं अत कवि अशग ने अपने महावीर चरित में 'महातिमहावीर' यह एक नाम दिया है जिसका अयं होता है महान् से भी अत्यन्त महान् वीर । स्व० ५० वचन्द जी सा० ने इसके हिन्दी अनुवाद में अतिवीर और महावीर ऐसे दो नाम बताये हैं जो मूल से विरुद्ध हैं मूल में तो एक धनांत प्रयोग किया है देखो स महाति महादिरेष वीर प्रमदादित्यभिधाष्य. पत्ततस्य ॥ १२६ ॥ पर्व १७ । अत अशग के अनुसार भी 'महातिमहावीर ' यह एक नाम ही सिद्ध होता है। धनजय नाम माला के श्लोक ११५ में लिखा है-सन्मति मंहति वीरो महावीरोऽ म्त्यकाश्यप ॥ यहाँ महति' 'वीर' महावीर ऐसे अलग अलग नाम बताये हैं यह कवि की प्रतिमा है अमरकीति ने इसके भाग्य में 'महति' नाम का अर्थ इस प्रकार किया है - महती-पूजा यस्य स महति । किन्तु उत्तरपुराण आदि मे 'महति महावीर' यह एक नाम ही दिया है। दो नाम इसलिए भी नही हो सकते कि - उत्तर पुराण पर्व ७४ श्लोक २६५ मे 'महावीर' यह नाम सपंवेपी संगमदेव ने पहिले ही रख दिया था, देखो-स्तुत्वा भवान्महावीर इति नाम चकार स । * सकल कीतिकृत महावीर चरित मे भी 'महति महावीर' यह एक ही नाम ठीक उत्तरपुराणानुसार दिया है स्वय स्खलपितु चेत समाधेरसमर्थक । स, महति महावीराख्या कृत्वा विविधी स्तुति ।।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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