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________________ १०८ ] [ * जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ उस वक्त मुझे विपुलाचल पर विराजमान जानकर वह जम्बू उत्सव के साथ मेरे पास आ मेरी भक्ति पूर्वक वदना कर सुधर्मगणधर के समीप संयम धारण करेगा। मेरे केवलज्ञान के १२ वें वर्ष जब मुझे निर्वाण प्राप्त होगा तब सुधर्माचार्य केवली और जम्बूस्वामी श्रुतकेवली होंगे। उसके बाद फिर १२ वें वर्ष मे जब सुधर्म केवली मोक्ष जायेगे तब जम्बूस्वामी को केवल ज्ञान होगा । फिर वे जम्बू केवली अपने भव नाम के शिष्य के साथ ४० वर्ष तक विहार कर मोक्ष पधारेंगे। उत्तर पुगण पर्व ७४ श्लोक ३३१ आदि मे लिखा है कि . एक दिन उज्जयिनी के स्मशान मे महावीर स्वामी प्रतिमायोग से विराजमान थे। उनको ध्यान से विचलित करने के लिए रुद्र ने उन पर उपसर्ग किया। परन्तु वह भगवान को ध्यान से डिगाने में समर्थ न हो सका। तब रुद्र ने भगवान का2 महतिमहावीर नाम रखकर उनकी बड़ी स्तुति की और फिर नृत्य किया । 2 भारतीय ज्ञानपीठ, काशी से प्रकाशित उत्तर पुराण पृ० ४६५-६६ मे महति और महावीर ऐसे २ नाम अनुवादक जी ने दिए हैं किन्तु मूल मे एक वचनांत पद होने से 'महतिमहावीर' यह एक ही नाम सिद्ध होता है देखो पर्व ७४ 'समहतिमहावीराख्यो कृत्वा विविधा स्तुती' ||१३६॥ इमी के आधार पर आशाधर ने भी त्रिषष्ठि स्मृति शास्त्र में सर्ग २४ श्लोक ३४ मे 'महतिमहावीर' यह एक नाम सूचित किया है । इसी तरह स्वकृत सहस्त्रनाम के श्लोक १ में भी 'महति महावीर' यह एक नाम देते हुए उसका
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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