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________________ अमरचन्ध परमार- प्रसिद्ध जैन कवि एवं वक्ता, पशुवध एवं चौरफाड़ का विरोध किया, स्वर्ग. १९१६ ई० [टक. ] 1 अमरचमा पाटनी- १८०३-३५ ई० तक जयपुर राज्य के दीवान रहे । दीवान रतनन्दसाह के पौत्र और दीवान श्योजीलाल के सुपुत्र थे, बड़े धर्मात्मा, दयालु, उदार और दानी थे, दिग. जैन थे, अनेक साहित्यकारों के प्रश्रयदाता, जरूरतमन्दों के त्राता थे । अपनी हवेली के निकट विशाल धर्मशाला एवं भव्य जिनमन्दिर बनबाया, जो 'छोटे दीवान जी का मन्दिर' नाम से प्रसिद्ध है । धर्म-कर्म के बड़े पक्के थे । एक राजजंतिक षडयन्त्र मे प्राण गंवाये । परमारमप्रकाश - टिप्पण के कर्ता प० सदासुखजी व afe वृन्दावनलाल के साथी । [प्रमुख. ३४१-३४२ ] अमरचन्द बड़जात्या, पं०- सांगानेर निवासी, १७वीं शती, तेरापंथ बाम्ननाय के प्रबल पोषक [ कैच. ९२,९३] अमरचन्द बांठिया- १. ग्वालियर के सिंथिया नरेश के मंत्री (१८०३-१३ ई०), । [ टंक. ] राजकोप के शिकार हुए, श्वे. जैन २. ग्वालियर के सिंधिया नरेश के राजमहल के गंगाजली नामक कोषागार के खजांची तथा राज्य के साहूकार थे- १८५७ ई० से स्वतन्त्रता संग्राम मे रावमाहब आदि विद्रोही सरदारों के कहने पर वह खजाना उनके लिये खोल दिया और यथेच्छ धन लेने दिया। परिणामस्वरूप अग्रेजों ने १८५८ ई० मे फासी का दण्ड दिया । [मेकफर्सन की रिपोर्ट ] अमरचन्द सुराना- बीकानेर नरेश सूरतसिंह (१७८७-१८२० ई०) के दीवान, १८०५ ई० में भट्टी सर्दार जाब्ता खाँ से भटनेर छीना, १८०० ई० में जोधपुर नरेश मानसिंह के जैन सेनापति इन्द्रराज के आक्रमण को निरस्त करके जगनेर को सधि की राज्य के कई बिद्रोही सामन्तों का मफलतापूर्वक दमन किया, की उपाधि, सरोपा एवं हाथी दिया, अन्त मे अमोरखा पिडारी के साथ षडयन्त्र करने के झूठे आरोप में फांती दे दी गई -विधवा युवापत्नी बची। [टंक ; प्रमुख ३३७; कैच २२३-४] ૪ राजा ने 'राव' १८१७ ई० में ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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