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________________ ४. दे. अभयदेव। १. सेवान्तिक, बनवासी, दिगम्बराचार्य, जो नन्दिसंप की पट्टावली में न० ७७ पर, ग्वालियर पट्ट के अन्तर्गत, चास्कीति के पश्चात बोर बसन्तकीति के पूर्व उल्लिखत हैं -समय न. १२०७ ई.। २. उसी संघ के देवचन्द्र के शिष्य, और वसन्तकीति के गुरु तथा विशालकीर्ति के प्रगुरु -विशालकीति के शिष्य शुभकीति और प्रशिष्य धर्मचन्द का उल्लेख १३00 के चित्तौडके शि. ले. में हुआ है। शिसं.v. १५२,१७३] ३. उसी संघ के दिल्ली-पट्टाषीस रायराजगुरु अमाचन्द्र के शिष्य, और उन आर्यिका धर्मश्री के प्रगुरु, जिन्हें १४०४ ई. में महमूद शाह तुगलुक के शासनकाल में, साहीवाल जातीय श्रावक नल्ह ने पुष्पदन्त कृत अपभ्रश आदिपुराण की प्रति भेंट की थी। ४. काष्ठासंघ-मायरगच्छ-पुष्करगण की पट्टावली के दसवें गुरु, जो विश्वकीति के शिष्य और भूतिसेन के गुरु थे । ५. उसी पट्टावली के २३वें मुरु, जो यश.कीर्ति के शिष्य और महासेन के गुरु थे। अभय, अभयराजकुमार या अभयकुमार, मगषनरेश श्रेणिक बिबि. सार (छठी शती ई.पू.) के वक्ष्य (मतान्तर से ब्राह्मण) पत्नी नन्दा से उत्पन्न पुत्र, पिता महाराज श्रेणिक का बुद्धिनिधान महा मन्त्री, विचक्षण राजनीतिम, कुशल प्रशासक, अत्यन्त न्यायप्रिय सुविचारक, परम जिनभक्त, तो. महावीर का अनन्य उपासक, अन्त में मुनिदीक्षा लेकर आत्मसाधन किया । अरब (इराक या ईरान) का राजकुमार आक ( संभवतया अर्देशिर ) इसका परम मित्र था और इसके प्रभाव से उसने जैनधर्म बंगीकार किया, ती. महावीर के भारत आकर दर्शन किये, अन्त में मुनिदीक्षा ली। अभयकुमार की अद्वितीय बुद्धिमत्ता, चातुर्य एवं न्यायप्रियता की अनेक कहानियां प्रचलित हैं -आज भी जैन महत्व मांगलिक अवसरों पर 'हमें अभमकुमार जैसी बुद्धि प्राप्त हो' यह भावना करते हैं। [भाइ. ६५; प्रमुव. १७-१८] ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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