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________________ के परचातु, श्रीपालदेव के साथ हुवा है | [शिसं -२६४ एक-iv-८३; शोधांक- १६] ७. मन्तवीर्य सिद्धान्ति, जो मूलसंच कानूरगण- कुन्दकुन्दान्वय के मागनंदि के शिष्य उन प्राचन्द्रदेव के सथम थे जो १११७६० केसिले के प्रस्तोता राजा नलियगम के पिता राजाबम्मदेव के गुरु थे अतः ल. ११०० ई० मे थे । [विसं. ॥. २६७; एक. vii-x७; शोधांक- १६] ८. अनन्तवीर्य सिद्धान्तदेव, जो कानूरगण-मेवपाषाणगच्छ के माथनन्दि सिद्धान्तदेव के शिष्य थे, प्रभाचन्द्र बौर मुनिचन्द्र के सधर्मा थे, मोर गंगनरेश रक्कसगंग के गुरु थे यह उल्लेख उक्त राजा के भतीजे मगिंग के मदिर निर्माण एवं भूदान के ११२१ ई० के शि. ले. में हुआ है । अतः इनका समय ल. ११०० ई० है, संभवतथा न० ७ से अभिन्न हैं। [जैशिसं - २७७; शोषांक - १६] ९. अनन्तवीर्य सिद्धान्तकर जिनके शिष्य श्रुतकीर्ति बुध, कनकनंदि विद्य और मुनिचन्द्रवती थे - मुनिचन्द्र के शिष्य कनकचन्द्र, मामवचन्द्र मोर बालचन्द्र त्रैविद्य थे। अन्तिम दोनों को १११२ ई० ( मतान्तर से ११३२ ई०) में जिनमंदिरों के लिए दान दिये गये थे । संभवतया यह अनन्तवीर्य न० ७ एवं ८ से अभिन्न हैं । [जैशिसं. ii - २९९; एक. vii. ६४; शोधांक १६] १०. सूरस्थगण के ' चारुचरित्रभूषर ', ' राजाओं द्वारा बन्दितचरण', 'राद्धान्तार्णवपारम' अनन्तवीर्य, जिन की शिष्य परम्परा में क्रमश: बालचन्द्र प्रभाचन्द्र कल्नेलेदेव अष्टोपवासिमुनि, हेमनंदि, विनयनंदि और एकबीर मुनि हुए- अन्तिम के अनुज पल्लपडित अपरनाम पाल्य की तिदेव के समय के ११२४ ई० के शि. ले. में इनका उल्लेख हुआ है। [जैशिसं ॥ - २६९; एक-iv१९; शोघांक-१६] ११. अनन्तवीर्य, जिनका उल्लेख सेनगण की पट्टावली में न० २२ पर, अमितसेन के प्रशिष्य एवं कोर्तिसेन के शिष्य, तथा बीरसेन के गुरु और जिनसेन के प्रगुरु के रूप में हुआ है -समय ल. ७५० के कुछ पूर्व संभव है कि न० १ से अभिन्न हों। [सोंषांक - १६] ऐतिहासिक व्यक्तिकोष २९
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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