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________________ बोहाचार्य के प्रायवती ईसापूर्व मे जकास्पद की बहसंख्यक बनता के साथ जनम में दीक्षित हिमा बताया जाता हैबबीतकाम्यय या अमवालों का पूर्वक। बहरापनकी सन्तति में उत्पादच्याशी मजयथा, ऐसी बनुश्रुति है। उसके १५ पुचों के गुरुगों के नाम पर बवालों के साडेसत्तरह गोड प्रचलित ए बताये जाते हैं। . . . . .. । मशेचार-देवगण-पाषाणामय के बावार्य, बिमोहिम महीदेव के गृहस्थ शिष्य निरवय ने मेलसगिरि पर १०६. लगभग निरच. जिनालय निर्माण कराया था। परन्दपं सेनमार नामक तरकालीन राजा ने उस मन्दिर के रित में एक दानशासन जारी किया था. अन्य अनेक लोगों ने भी दान दिया था। शिसं १९३] १. पौराणिक ९ वनमहों में से बितीय स्वभा २. पौराणिक ११ द्धों में खड़े कर। ३. ती. महावीर के ११ गणपों में से नौवें गणधर अचल, , बचलतम बलमाता। ४. यमोबाह बोर कोण्डकुन्द के मध्य होनेशले १२ बचाने मे से । विसं १०५]. ५. . अपनवास राग [शिसं ४ २५३-२५४] परित फीरोजाबाद में बकायनाते को कपा' रची, ___ वापहारवाया' भी कर्ता। २. 'विश्वनाथ विसनपुण ' मा स्नोत्र की रथमा, १९५८ ई० में, करने पो कि [टा १. कारंजा के काष्ठासदी महाक खोल के और दिल्ली पट के मण्डलाबार्य र शिष्य अचलकीर्ति ने १६६६ पौष शु २ सोमवार के दिन 'नगर' नामक स्पन में धर्मखो' की हिन्दी का में रal संशक है कि तीनों अभिन्न हों। देवीकोट (जैसलमेर) के कोना माल नाटा , मावलीमद के पुर उa r am में से (१८४७-१९११६०), म्यूनिसपल कमिश्नर एवं बनरेरी ऐतिहासिकम्मक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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