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________________ एकीयांचाई- १२१५६० में मोगा के कदम्बनरेण जयकेपी ४० से मानिक्य. पुर के प्रसिद्ध नामर-जिनालय (मूलनायक-पाबनाय) के लिए दान प्राप्त करने वाले मापनीय संघ के बाहुबलि सिद्धान्तिदेव के प्रगुरु । [देसाई. १४५] ल. १२०.ई. में समाधिमरण करने वाले नामिसेट्टि की जननी उक्किसेट्टि की धर्मात्मा पस्नी, नामिसेट्टि नयकीर्ति व्रतीश का शिष्य था। [शिसं. iv. ३७१] एकसन्धि- १. द्रविड़संघ-नंदिगण अरुङ्गनान्बय के पुरातन आचार्यों में, सिंहनंदि और नकलकुदेष के मध्य नपा सुमति भट्टारक के साथ संयुक्त रूप से, १०७७ १. के तपा ११२५ ई. के व अन्य शिलालेखों मे उल्लिखित माचार्य, ल० ६.००। [शिसं. iv. २४६; 1. २१३; i. ४९३; एक. viii. ३५] -यह स्पष्ट नहीं है कि यह स्वतन्त्र व्यक्ति हैं, अपवा सुमति. भट्टारक का ही विशेषण 'एकसंधि' है। २. अय्यपार्य के जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय (१३१९६०) में उल्लि. खित एक पूर्ववर्ती प्रतिष्ठापाठ के कर्ता -इनका उल्लेख हस्तिमल्ल के पश्चात किया है। इनका अन्य प्रतिष्ठापाठ, जिनसंहिता या एकसंघिसंहिता भी कहलाता है। यह एकसंधि भट्टारक ल. १२०० ई. में हुए प्रतीत होते हैं। [सं. ५८. ६१, प्रवी.i. १ ३. उपलब्ध इन्द्रनंदिसंहिता (प्रा.) में उल्लिखित एक 'पूजाविधि' के रचयिता मुनि एक सन्धिगणी-संभव है, न. २ से अभिन्न हों। [पुजैवासू. १०७] एकान्त बासवेश्वर- एकान्त रामय्य की परम्परा में उत्पन्न लिंगायत या वीर शैव सम्प्रदाय का एक महान आचार्य एवं प्रचारक, अनेकान्तमत (जैनधर्म) का प्रबल विरोधी, ल० १४००६०, विजयनगर के बुक्कराय का समकालीन। [मेज. २९३] एकान्त रामम्य- कुन्तलदेशस्थ मानन्द निवासी शैव ब्राह्मण पुरुषोत्तमभट्ट का पुत्र राम या रामग्य, लिंगायत या वीरशंव सम्प्रदाय का सर्व. प्रसिद्ध मेता एव प्रचारक, बनेकान्तवादी जिनधर्म का कट्टर ऐतिहासिक व्यक्तिकोश
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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