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________________ २. विग., ज्योतिषाचार्य, संस्कृत में निमितशास्त्र (१८८) के ३. दिग., कल्याणमंदिर स्तोत्र-टिप्पण के कर्ता। षटशास्त्र निर्वाहकारक विद्वान, बिनने जहानाबाद (दिल्ली) में, १७३५६० में बालापपद्धति की प्रति निखवाई थी। [कुना. ऋषिरामबह्मचारी- दिग., हिन्दी पद्य में मुदर्शन चरित्र के रचयिता, न. १६..ई.। अषिपर्डन- श्वे., जिनेन्द्रातिशय पंचाशिका (सं०) के रचयिता, म. अविबर्डमरि-- श्वे०, अंचलगच्छोय जयकोति के शिष्य, १४५५ ई० में, चित्तौड में,मल-दमयन्ती रासकी रचना राजस्थानी भाषा मे की थी। [कुशल. अप्रैल ९८, पृ. ३६] ऋषिधी- रणथम्भौर के प्रसिद्ध बनबराज रेखा पण्डित को धर्मात्मा भार्या (ल. १५५० ई.) [प्रमुख. २४५] एकपद्धगर मटार- कुन्दकुन्दावय के आचार्य, संभवतया मिट्टी का बना कमणलु रखते थे। इनके शिष्य आचार्य सर्वनन्दि थे जो महान विद्वान, सिद्धान्तक, कवि और प्रभावक नाचार्य थे, और जिन्होंने ८८१ ई. में सन्यासमरण किया था। [देसाई. २२४, ३४०. १४१] एकमेवमोणि- देवगणामी गुणनिधि देवेन्द्र भट्टारक के शिष्य एकदेव योगि, जिनके शिष्य जयदेव पंडित को गंगनरेश मारसिंहदेव सत्यवाक्य कोंगुणि ने शवती के स्वनिर्मापित मंगकन्दप-जिनालय के लिए ९६८ १० में प्रभूत दान दिया था। [शिसं.-१४९; इंए. vii. ३८; देसाई. १८९; प्रमुख..,८६] एकवीरतुनि- सूरस्थगण के आचार्य अनन्तवार्य की शिष्य परम्परा में विनय. नन्दि के शिष्य और पल्लपण्डित (पल्लकोति या पाल्यकोति) के ज्येष्ठ सधर्मा एवं गुरु-पल्लपडित का समय १११८.है। [शिसं.-२६९; एक. iv. १९] १४० ऐतिहासिक व्यक्तिको
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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