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________________ तथाकथित स्वोपज भाष्य तथा प्रशमरतिप्रकरण आदि अन्यों के रचयिता यही प्रतीत हैं। रमास्वामि- १. तस्वाभिगमसूत्र, अपरनाम मोलशास्त्र, दशाध्यायी, सस्वार्थमहामास्त्र बादि, नामक अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा दिगम्बर स्वेताम्बर मादि सभी जैन सम्प्रदायों मे समानरूप से मान्य धर्मशास्त्र के प्रणेना। उमास्वाति, गृपिच्छ मादि उपनाम मोर श्रुनकेवसिदेशीय, पूर्ववित्, बापक से विशेषणों से युक्त यह महानाचार्य न पुस्तक साहित्य के प्रारंभिक पुरस्कायों में से हैं। इनके तत्वार्थ सूत्र पर उभय सम्प्रदाय के विद्वानों द्वारा लिखित विपुल टीका साहित्य है -शायद किसी अन्य एक ग्रन्थ पर इतनी टीकाएं नहीं लिखी गई, जितनी मात्र ३५७ लघुसंस्कृत सूत्रों वाली इस रचना पर निखी गई है। यह ग्रन्थ मागमिक कोटिका है । एक अनुश्रुति के अनुसार यह कुन्दकुन्दा. चाय के शिष्य थे। इन उमास्वामि का समय ईस्वी सन् की प्रथम शती के मध्य के लगभग (४४-८५ ई.) प्रायः निश्चित किया गया है। जैसो. १३४-१३७] २. उमास्वामि भट्टारक, उमास्वामिश्रावकाचार के कर्ता, ल. १४वीं शती ई.। उमेवचन- इवे...१८३०ई० में प्रश्नोत्तरशतक' के रचयिता, वाचक राम चन्द्र के शिष्य। [कैच. १५८] सर्व- प्राचीन संस्कृत कवि जिन्होंने, सोमदेवसूरि (९५९ ई.) के उल्लेखानुमार, जैन मुनियों का उल्लेख अपने अन्य में किया है। [साइ. ७१, ७८] रबिलारामी- ल. २०० ईसापूर्व में, मथुरानरेश पूतिमुख की जैन रानी थी। उसकी पत्नी बौद्ध थी, राजा भी उसी के प्रभाव में था। तभी मथुरा के प्राचीन देवनिर्मित स्तूप के अधिकारी को लेकर बैनों और बौद्धों के बीच विवाद हमा। महारानी उक्लिा ने दूर-दूर से जैन विद्वानों को बुलाकर शास्त्रार्थ कराया, यह सिड करा दिया कि स्तूप जनों का ही है, फलत: रानी ने जिनेन्द्र की रथयात्रा निकाली और धर्मोत्सव किया। [प्रमुख. ५९, ६५] १४४ ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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