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________________ संच कारगण के कुलचन्द्रदेव को नावर खंड में भूमि प्रदान की थी । [प्रमुख. १२१] २. होयसल युबराज एरेवंग महाप्रभु और गुजराशी एचलदेवी का तृतीयपुत्र, बल्लाल प्र० तथा विष्णुवर्धन का अनुज, वीर एवं जिनभक्त राजकुमार, मृत्यु ११२३ ई० । [ मेजं. ११५, ११८: प्रमुख. १३६; जैशिसं: iv. २१२, २७१, २५२] ३. उदयपुर (ग्वालियर ) प्रशस्ति का प्रस्तोता मालवा का परमार नरेश, भोजपरमार का अनुज एवं उत्तराधिकारी ( ल० १०५९-१०८७ ई०), लक्ष्मवर्म, नर वर्म तथा वीर जगदेव का पिता । कई अभिलेखों में उदयी नाम से उल्लिखित । शायद इसी का नाम जयसिंह प्रथम था । [ देसाई. २१०, २४४-२४६; बेशिसं. iv. १७४; एच. १२९ ] विद्वान, ल० ४. कन्नड भाषा में अलंकार शास्त्र के रचयित ११०० ई० । सभवतया न ० २ से अभिन्न हैं। [ककच. ] ५. कल्याणी के चालुक्य सम्राटों का सामन्त राजा, सोमदेव और कञ्चलदेवी का पुत्र उदयादित्य जिसने ११९५ ई० में, ताडपत्री (आन्ध्रप्रदेश) की प्रसिद्ध चन्द्रनाथ- पार्श्वनाथ वसदि के लिए मूल संघ - देशी गण-पुस्तकगच्छ इंगलेश्वर बलिके बाहुबलि . के प्रशिष्य और मानुकीर्ति के शिष्य मेषचन्द्र को भूमिदान दिया [ देसाई. २२; मेजे. २५३; प्रमुख. १९१; जैशिसं. iv. था। २८४ ] ६. होयसल नरेशों का प्रसिद्ध मन्त्री, शान्तिक्का का पति, चिनराज दण्डाधीश का पिता और उदयण एवं बालवीर सर्वाधिकारी विष्णु दण्डाधिपति का पितामह । [ मेजं. १३८ प्रमूख. १४८ ] ७. होयसल नरसिंह प्र० के महाप्रधान देवराज ( द्वि.) का पिता और कोषिकगोत्री जैन ब्राह्मण देवराज ( 50 ) का पुत्र । [ प्रमुख. १५० ] ८. होयसल नरेश के सेवक पेगंडे वासुदेव का जिनभक्त पुत्र उदयादित्य, जिसने सूरस्यगण के गुरु चन्द्रनन्दि के उपदेश से, १२वीं शती ई० में, वासुदेव जिनालय का निर्माण कराया था । [जैशि. iv. २८९ ] ऐतिहासिक व्यक्तिकोश १३९
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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