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________________ २. डूंगरपुर-बासवाडा का जिनधर्म पोषक नरेश, रावल गंगदास का उत्तराधिकारी, ल० १५१४ ६० । [ कैच. ३४] ३. सिरोही का जैनधर्म पोषक नरेश, ल० १५६५ ई० । [कंच. ३७] उदयसिंह राजा - मेवाड़नरेश, राणा सांगा के पुत्र और राणा प्रताप के पिता - बाल्यावस्था में इसकी रजा कुम्भलमेर के जैन दुर्गपाल आशाशाह ने की यो। [ प्रमुख. २५७; कंच. २२४, २२५ ] उपसह सुराणा, संघपति साहू पालहंस के पिता और संघपति माणिक सुराणा के पितामह, ल० १५३० ई० । [ प्रमुख. २८६ ] दर्यासह श्रीभ के शिष्य और श्रीप्रमकृत धर्मविधि की टीका (११९६ ई०) के कर्ता । जिनवल्लभकृत पिण्डविशुद्धिदीपिका के कर्ता भी संभवतया यही श्वे० विद्वान हैं । उदयसेन- उदयादित्य - १६८ १. सेनगण से सम्बद्ध ग्याट (लाट) वागड़ संघ के आचार्य सिद्धान्तसार के रचयिता नरेन्द्रसेन के गुरु गुणसेन तथा जयसेन के सर्मा और वीरसेन के शिष्य उदयसेन, ल० ११०० ई० । [ प्रवी. . ५६ ] २. उपरोक्त नरेन्द्रसेनाचार्य के शिष्य उदयसेन, ल. ११२५ ई० । ३. पं० आशाधर (ल० ११९०-१२५० ई०) को नयविश्वचक्षु' एवं 'कलिकालिदास' उपाधियां प्रदान करने वाले, उनके गुणानुरागी वयज्येष्ठ मुनि । [ जैसाइ. १३०, १३७; प्रमुख. २१२ ] ४. मुनिसुव्रत पुराण (१६२४ ई०) के रचयिता ब्रह्म कृष्णदास की गुरु परम्परा में काष्ठासंधी सोमकीर्ति के प्रशिष्य, यश कीर्ति के शिष्य, त्रिभुवनकीर्ति के गुरु और लेखक के गुरु रत्नभूषण के प्रगुरु उदयसेन, ल० १५५० ई० । [ प्रवी. . ४६ ] - त्रिभुवनकीति ने जीवंधररास की रचना १५५१ ई० में की थी। १. चालुक्य पेर्माडि भुवनेकवीर महाराज उदयादित्य पश्चिमी चालुक्य सम्राट भुवनेकमल्लदेव सोमेश्वर द्वि. (१०६८-७६ ई०) का जैन सामन्त और कोलालपुर का राजा था। उसकी प्रेरणा से सम्राट ने, १०७४ ई० में, वन्दनिके तीर्थ की प्रसिद्ध शान्तिनाथबसदि का जीर्णोद्धार कराया और एक दानशासन द्वारा उक्त मंदिर के संरक्षण एवं चतुविष दान व्यवस्था के लिए मूल ऐतिहासिक व्यक्तिकोश
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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