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________________ २. जूनागढ़ का नरेश, ती. अरिष्टनेमि को वाग्दत्ता राजीमती (राजुल) का पिता । ३. सिकन्दर महान के समकालीन मगध नरेश महापद्मनन्द का अपरनाम । [प्रमुख. ३१, ३३] ४. सहारनपुर के जैन रईस सा० उग्रसेन (ल० जिनके दत्तक पुत्र सा० जम्बूप्रसाद रईस थे । उपसेन गुरु- मालनूर के पट्टिनीगुरु के शिष्य, जिन्होंने, ल० ७०० ई० में, एक मासतक सन्यास व्रत ( सल्लेखना) का पालन करके श्रवणबेलगोलस्थ चन्द्रगिरि पर प्राणोत्सर्ग किया था। संभवतया सेन संघ के आचार्य थे। [जैशिसं i. एक. ii. २५; देसाई २३२] उद्यादित्य मचायें- आयुर्वेदशास्त्र के महत्वपूर्ण, मौलिक एवं सांगोपांग ग्रन्थ 'कल्याणकारक' के रचयिता, जो संस्कृत पद्य में निवड, दो खंडों और २५ अधिकारों में विभाजित है, जिसके अतिरिक्त अन्त में दो परिशिष्ट हैं - प्रथम में अरिष्टविचार ( मरणांतिक लक्षणों) का वर्णन है और दूसरे हिताहित - अध्याय में वैद्यकशास्त्र तथा आहार आदि में माँसनिराकरण का प्रमाण एवं युक्तिसिद्ध प्रतिपावन है । यह आचार्य मूलसंघ - कुन्दकुन्दान्वय में देशोगणपुस्तकगच्छ - पनसोगबहिल शाखा के आचार्य श्रीनंदि के शिष्य और ललितकीति के सधर्मा थे। आचार्य श्रीनंदि रामगिरि (आन्ध्रदेशस्थ विशाखापटनम् जिले का रामतीर्थ या रामकोण्ड पर्वत) के विशाल जैन विद्यापीठ के अधिष्ठाता थे वहीं उग्रादित्य ने विद्याध्ययन किया था । तदनन्तर गुरु के आदेश से वहीं उन्होंने वेंग के पूर्वी चालुक्य नरेश विष्णुवर्धन चतुर्थ (७६२-९९ ई०) के शासनकाल में उक्त वैद्यक महाशास्त्र की रचना की थी। कालान्तर में मान्यखेट के राष्ट्रकूट सम्राट अमोघवर्ष प्रथम (८१५-७७ ई०) की राजसभा में मांसाहारनिषेध पर जो व्याख्यान दिया था, उसे हिताहिताध्याय के रूप में परिशिष्ट में जोड़ दिया । इस ग्रन्थ में आयुर्वेद का मूल fate द्वादशांगी के प्राणवायपूर्व को सूचित करते हुए अनेक पूर्ववर्ती जैन आयुर्वेदाचायों और उनके ग्रन्थों का भी संकेत ऐतिहासिक व्यक्तिकोश १३० १९०० ई० ), [प्रमुख. ३६४ ]
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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