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________________ आश्पादेवी या बालपदेवी, आलुपबंशी परम जैन धर्मात्मा राजकुमारी, नोलम्ब-पल्लव राजा इरंगोल की रानी, कानूरमण - कोण्डकुन्दावय के पुष्पनम्ति मलधारीदेव के शिष्य दावमन्दि आचार्य द्वारा कोशिवरम में निर्मापित जिनालय का जीर्णोद्धार एवं संरक्षण तथा विविधरूपों में जिनधर्म की प्रभावना करने वाली महिला, १०वीं शती ई० । [ देसाई. १५८-१५९, १६३; जैशिसं. iv. ६२१-६२२] आल्हण -- ३. गुजरात के गंधारपत्तन (बन्दरगाह ) का जैन व्यापारी, जिसके वाजिया तथा राजिया नामक वंशजों का मुग़ल सम्राट तथा फरंग देश के बादशाह के दरबारों में विशेष सम्मान था । [टेक.] मरहणवेब- नाडोल के चाहमान नरेश मश्वराज का पुत्र एवं उत्तराधिकारी राजा आल्हणदेव (११५२-६१ ई०), जो चोलुक्य कुमारपाल का सामन्त था, अबल्लदेवी का पति और केल्हण, गजसिंह एवं कीर्तिपाल का पिता था, और जिसने संडेसरागच्छ के यतियों को, ११६१ ई० में, महावीर जिनालय के केशर, चन्दन, बुत आदि के लिये पांच स्वर्णमुद्रा मासिक का सदैव चलने वाला दान दिया था। [टक; कैच. २१-२२; गु. १५३ ] बारहसिंह- चन्द्रावती नरेश ने १२४३ ई० में पार्श्व-जिनालय के लिए दान दिया था। [कंच. २५ ] मांडू के सुलतान के जैन मन्त्री के छः पुत्रों में से एक इसके भाई बाहर का पुत्र प्रसिद्ध साहित्यकार एवं राज्यमन्त्री मंडन मदराज (१४४६ ई०) था। [ टंक. ] आल्हा संघ -- भोज बचेरवाल के पुत्र और म. सुरेन्द्रकीर्ति के गृहस्थ शिष्य ने ल. १७०० ई० मे, उदयपूर के निकट घुलेव मे नवनिर्मापित जिनालय का प्रतिष्ठोत्सव किया था। [कैच. ७२] ऐतिहासिक व्यक्तिकोश बाल्हा १. गृहपतिवंशी दिग श्रेष्ठि पाणिवर का धर्मात्मा पुत्र, जिसने ११४५ ई० में, खजुराहो में जिनबिम्ब प्रतिष्ठा कराई थी । [जैशिस. iii. ३२९; प्रमुख. २२६ ] २. ब्रह्मक्षत्रगोत्रीय मानू के पुत्रों बाल्हण और दोल्हण ने १२४० ई० में कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) के कीरग्राम में महावीर जिनालय बनवाया था। [टंक. ] १०६
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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