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________________ के शिष्य और उन महासेन मुनीन्द्र के गुरु, जो चालुक्य महारानी तसदेवी के पथक-सामणि (दीवान) चाफिराब के धर्मगुरु एवं वियागुरु थे जिसने १.४० में कई जिनालय बनवाकर प्रभूत दान दिया था। [प्रमुख. १२३; जैशिसं. ii. १८५; देसाई. १.६] ३. कन्नर 'पुण्यात्रवपुराण' के संशोधनकर्ता एवं संपादक टोंक (गजस्थान) के ११०२ ई. के जिनप्रतिमा-लेख में उल्लिखित धर्मात्मा श्रावक। [शिसं. iv. १८५] मालपदेवी- दे. अलपादेवी। [शिसं. iv. ६२१-६२२] मालाप्पिरबान मोगन- उपनाम कुलोत्तुंग शोलकारवरायन ने कुलोत्तुग चोल. देव वि.के राज्य में, ११३७६. में. भ. चन्द्रनाथ की प्रजाचर्चा के लिए एक ग्राम की चाबल की फमल दान की थी।शिसं. iv. २२३] मालिग- गुजरात नरेश जयसिंह सिद्धराज (१०९४-११४३ ई.) का एक जैन मन्त्री। [प्रमुख. २३१] मालोक- १. दिग. जैन वैद्यराज अम्बर के पौत्र, श्रुतज्ञ एवं आयुर्वेद पारं गत पापाक के ज्येष्ठपुत्र, साहस एवं लल्लुक के अग्रज, शोमवती हेला के पति, माथुरान्वयी छत्रसेन गुरु के अनन्य भक्त, और बाहक, सल्लाक एवं उस भूषण सेठ के पिता, जिसने अgणा (जिला दूंगरपुर, राजस्थान) में, ११.९ ई. मे, एक भव्य विशाल वृषभ-जिनालय निर्माण कराके महान धोत्सव किया पा। यह सेठ बालोक सहजप्रज्ञ, इतिहास एवं तत्वार्थ के माता, संवेगयुत, साधुसेवी, और भोगी एवं योगी सज्जन थे। [प्रमुख. २१८; जैशिसं. iii. ३०५ क.] २. उपरोक्त सेठ भूषण और उनकी भार्या सीली के ज्येष्ठपुत्र, साधारण, शान्ति मादि के भाई, गुरु-देवभक्त धर्मात्मा सज्जन । [वही.] मार महावीर जिनेन्द्र के एक भक्त धर्मारमा, जिनके श्रवणबेलगोल में समाधिमरण करने पर चन्द्रगिरि पर उनका स्मारक बनाया गया था। [शिसं.i. १५५] ऐतिहासिक व्यक्तिकोश
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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