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________________ मंदिर बनवाकर उसके लिए पुजारी शान्तिशयन पंडित को प्रभूत दान ११२८ ई. में दिया था। [शिसं. ii २८८] मादित्य नप- दे. अरसादित्य, होयसल सेनापति बलदेवण्ण (ल. ११२०१०) का पिता, एक जैन राजा । [मेज. ११३] मादित्य वर्म-जिनधर्की युद्धवीर सामन्त था, जिसने, ल. १३०० ई. में, काणूरगण मेषपाषागगच्छ के कागिनेल्लि स्थित जिनालय में उत्तुंग स्तंभ (मानस्तंभ) बनवाया था। [देसाई. १४६; जैशिसं. iv.६०३] मादित्य शर्मा-प्राकृत मन्नानुशासम के कर्ता जैन वैयाकरणी त्रिविक्रम के पितामह। [प्रवी. ९५] मादित्याम्बा- दे. आइचाम्बा, अपभ्रन्श महाकवि स्वयंभू (ल. ८...) को विदुषी पत्नी। मादिवास- १. ने १५१८ ई. में, मलेयूर पर्वत पर स्वगुरु, कालोग्रगण (कोल्लारगण) के आचार्य मुनिचन्द्रदेव का चरणचिन्ह युक्न समाधिस्मारक बनवाया था। उसका गुरुभाई तथा इस धर्मकार्य में सहयोगी वृषभवास था। [मेज. ३३०; जैशिसं. ६६३ एक. iv. १४७, १४८, १६१, प्रमुख. २७१] २. तुलुवदेशीय श्रावक आदिवास ने, जो हनसोगेबलि के हेम. चन्द्र का नथा ललितकीति भट्टारक का शिष्य था, मलेयूर (कनकगिरि) पर, १३५५ ई० में, विजयदेव की मूर्ति बनवाकर स्थापित की थी, स्वगुरुओं की समाधियां भी बनवाई थीं। [मेंज. ३२८; एक. iv.१५३] आदिवेष- आदिनाथ, आदिपुरुष, आदिब्रह्मा आदि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के अपरनाम भारिदेव मुनि-मूलसंघ-देशीयगण-पुस्तकगच्छ-कोण्डकुन्दान्वय-इंगलिश्वरबलि के रायराजगुरु अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के शिष्य और श्रुतमुनि के शिष्य आचार्य प्रभेन्दु (प्रभाबन्द्र) के प्रिय अपशिष्य श्रुतकीतिदेव के १३८४ ६० मे स्वर्गस्थ हो जाने पर उनके शिष्य आदिदेव मुनि ने सुमतिनाथ-जिनालय का जीर्णोद्धार कराया तथा उसमें मुमति तीर्थकर की एवं स्वगुरु श्रुतकीतिदेव की ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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