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________________ या यादला, जैनधर्म में दीक्षित एक मुसलमान, जिसने 'भ. ऋषम की होली' (बाबो ऋषभ बैठे अलबेले...) शीर्षक भावपूर्ण कविता लिखी थी। [टंक.] मावलीचन- ने माणकदास नोमामी आदि महाजनों के सहयोग से सागवाड़ा के महारावल उदयमिह से १८५४ ई. में जीवहिंसा निषेधक आवेशपत्र निकलवाया था। [प्रमुख. ३४५] माविष्ट- वागवण्ड का पौत्र होनगवण्ड एवं जक्केगवुण्डि का पुत्र, और माडि, मार, माच तथा नाक गवुण्डों का पिता । महाप्रधान आदिगबण्ड होयसल नरेश वीर बल्लाल द्वि. के बोप्पदेव दण्डेश का अधीनस्थ राजपुरुष था। इस परिवार के धर्मगुरु द्रमिलसंधी वासुपूज्य मुनि के शिष्य पेरुमलदेव थे। आदिगवण्ड ने १२४८ ई० मे एक विशाल जिनालय बनवाकर, अपने पुत्रों सहित महान धर्मोत्सव किया था तथा स्वगूरु को भूमि आदि का दान समर्पित किया था जिसमें कोण्डाल के ४० जैन परिवारों के साथ समस्त ब्राह्मण भी सम्मिलित थे। [प्रमुख. १६३; शिस. iii. ४९६; एक. v. १३८] आदित्य हारवश पुराण की प्रशस्ति (७८३ ई.) मे उल्लिखिन वर्धमान पुराण के कर्ता पूर्ववर्ती दिग. विद्वान । [प्रभावक. ५२] मापित्य चोल- इस नरेश के समय (ल. ८५० ई०) उत्तरी भाट जिले के वन्डवाश तालुके में वेडालग्राम के निकटस्थ पार्वतीय गुफाओं में एक विशाल आयिका आश्रम पा, जिसकी अध्यक्षा आयिका गणिनी कनकवीर कुरत्तियार थी, जो वेडाल के मूलसंधी भट्टारक गुणकीति की शिष्या थीं, और जिनके आश्रम में ५०. साध्वी शिष्याएं थीं। उसी समय एक अन्य संघ मे ४०० साध्वियां थीं। राजा जैनधर्म का प्रश्रयदाता था। [देसाई. ४६] यह चोल नरेनों में आदित्य प्रथम था। मादित्य दण्डाधिप- चालुक्य सम्राट त्रिभुवनमल्ल के अधीनस्य राजा पाण्ड्य का प्रधान सेनापति यादववंशी सूर्य चमूप था-उसका अनुज वह आदित्य दण्डाधिनाथ शूरवीर दुर्टर योद्धा था। द्रविडसंधी मल्लिषेण मलधारी के शिष्य श्रीपाल विद्यदेव इन भ्रातृव्य के धर्मगुरु थे। इन भाइयों ने सेम्बतूर मे एक उत्तम पावं जिन ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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