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________________ ( ६८ ) माधुर्य मम को अपनी ओर आकृष्ट करता है ।' जब अनुराग स्त्री विशेष के लिए न रहकर, प्रेम, रूप और तृप्ति की समष्टि किसी दिव्य तत्त्व या राम के लिए हो जाये तो वही भक्ति की सर्वोतम मनोदशा है। भक्ति वस्तुतः अनुभव-सिद्ध स्थिति का अपर नाम है। भक्त में जब इस स्थिति का प्रादुर्भाव होता है तब उसके जीवन, विचार तथा आचार पद्धति में प्रायः परिवर्तन परिलक्षित हो उठते हैं।" ज्ञान प्राप्त्यर्थं पूजक भगवान जिनेन्द्र की पूजा करता है। जैन भक्ति में श्रद्धा तत्व की भूमिका उल्लेखनीय है । जिनेन्द्र भगवान में श्रद्धा रखने का अर्थ है अपनी आत्मा में अनुराग उत्पन्न करना । यही वस्तुतः सिद्धत्व की स्थिति है। इसी को दार्शनिक शब्दावलि में मोक्ष कहा गया है।" जैन- हिन्दी- पूजा- काव्य में राग को कर्मबन्ध का प्रमुख कारण स्थिर किया गया है किन्तु जिनेन्द्र भक्ति में अनुराग रखने का आग्रह उसमें तादात्म्य स्थिर करना है ।" जिनेन्द्र और आत्मस्वरूप में कोई अन्तर नहीं है। भक्त जिनेन्द्र भक्ति में मूलतः तन्मय हो जाना चाहता है । जैन धर्म में साधुओं और सुधी आवकों की नित्य की पर्या-प्रयोग में आने वाली भक्ति भावना को वश अनुमानों में विभाजित किया गया है। यथा १. हिन्दी जैन काव्य में व्यवहृत दार्शनिक शब्दावलि और उसकी अर्थ व्यञ्जना, कु० अरुणलता जैन, पी-एच० डी० उपाधि हेतु आगरा विश्व विद्यालय द्वारा स्वीकृत शोधप्रबन्ध, सन् १९७७, पृष्ठ ५४३ । २. कल्याण, भक्ति अंक, वर्ष ३२, अंक १ जनवरी १६५८, गोरखपुर, भक्ति का स्वाद, लेखक डॉ० वासुदेव शरण अग्रवाल, पृष्ठ १४४ । ३. हिन्दी जैन काव्य में व्यवहृत दर्शनिक शब्दावलि और उसकी अर्थ व्यञ्जना, कु० अरुणलता जैन, पी-एच० डी० उपाधि के लिए आगरा विश्वविद्यालय द्वारा स्वीकृत शोधप्रबन्ध; सन् १९७७, पृष्ठ ५४३ । ४. हिन्दी जैन काव्य में व्यवहृत दार्शनिक शब्दावलि और उसकी अर्थ व्यञ्जना, कु० अरुणलता जैन, पी-एच० डी० उपाधि के लिए आगरा विश्वविद्यालय द्वारा स्वीकृत शोधप्रबन्ध, सन् १९७७, पृष्ठ ५४४ । ५. जैन भक्ति काव्य की पृष्ठभूमि, डॉ० प्रेम सागर जैन, भारतीय ज्ञान पीठ, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण १६५३, पृष्ठ ६४ । ६. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ३, क्षु० जिनेन्द्र वर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण वि० सं० २०२६, पृष्ठ २०८
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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