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________________ -सिद्ध-भक्ति भूत-भक्ति ३ चारित्र भक्ति -योगि-भक्ति ५- आचार्य - भक्ति ६- पंच परमेष्ठि भक्ति - तीर्थकर - भक्ति 19 ( ६ ) ८ चैत्य -- भक्ति E -- समाधि - भक्ति १० - वीर - भक्ति इसके अतिरिक्त निर्वाणभक्ति, नंदीश्वर भक्ति और शांति भक्ति का भी उल्लेख मिलता है, जैन- हिन्दी-पूजा काव्य में ये सभी भक्तियां प्रयुक्त हैं यहाँ केवल वीर भक्ति का उल्लेख नहीं है । इन भक्तियों के अतिरिक्त जैन काव्य में नवधा भक्ति का भी विवरण उपलब्ध है। यह साधु-जनों के आहार दान के समय व्यवहार में प्रचलित है।' भारतीय सभी धार्मिक मान्यताओं में ब्रह्म के रूप में निर्गुण और सगुण नामक दो प्रकार की भक्त्यात्मक स्थितियों का उल्लेख मिलता है। जैन भक्ति में निराकार आत्मा और वीतराग भगवान के स्वरूप में जो तादात्म्य विद्यमान है वह अन्यत्र प्रायः सुलभ नहीं है । सामान्यत निर्गुण और सगुन के पारस्परिक खण्डनात्मक उल्लेख मिलते हैं किन्तु जैन धर्म में सिद्ध भक्ति के रूप में निष्कल ब्रह्म एवं तीर्थंकर भक्ति में सकल ब्रह्म का केवल विवेचन हेतु पृथक उल्लेख अवश्य मिलता है अन्यथा दोनों मे समानता है । जैन भक्ति में निर्गुण और सगुण भक्ति की कोई पृथक-पृथक व्यवस्था नहीं है ।" आठ कर्मों से रहित और अनन्त चतुष्टय गुणों का धारी मोक्ष में विराजमान जीव वस्तुतः परमात्मा कहलाता है।* १. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ३, क्षुल्लक जिनेन्द्रवर्ची भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण सन् १९७२, पृष्ठ २१० । २. जैन भक्ति काव्य की पृष्ठभूमि, डॉ० प्रेमसागर जैन, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण सन् १९५२, पृष्ठ १२ १ ३ अष्ट पाहुड, कुंद कुशवार्य, श्री पाटनी दि० जैन ग्रंथमाला, मारोठ, प्रथम संस्करण सन् १९५०, गाथांक १५०-१५१ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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