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________________ ( २६ ) करते हुए अनन्त चतुष्टय का प्रयोग किया गया है।' उन्नीसवीं शती के कविवर मनरंगलाल कृत 'श्री सुमतिनाथ पूजाकाव्य' में अनन्त चतुष्टय धारी देव के स्वरूप का चित्रण हमा है। इसी प्रकार बीसवीं शती के कवि सच्चिदानन्द द्वारा रचित श्री पंचपरमेष्ठी पूजा' में जीवन्मुक्त अहंत के गुणों की चर्चा में अनन्त चतुष्टय का प्रयोग हुआ है।' श्री चम्पापुर सिद्ध क्षेत्र पूजा में कविवर बोलतराम द्वारा आराध्यदेव के अनन्त चतुष्टय का वर्णन हुआ है। घातिया कर्मों के क्षय होने पर केवल ज्ञान के उदय होने की सम्भावना हुमा करती है । आचार्य अमृतचन्द्र सूरी केवल ज्ञान की चर्चा करते हुए स्पष्ट कहते है । जो किसी बाह्य पदार्थ की सहायता से रहित हो, आत्म-स्वरूप से उत्पन्न हो, आवरण से रहित हो, क्रम रहित हो, घातिया को के क्षय से उत्पन्न हुमा हो तथा समस्त पदार्थों को जानने वाला हो, वस्तुतः उसे केवल शान कहते हैं। १. एक ज्ञान केवल जिनस्वामी । दो आगम अध्यातम नामी। तीन काल विधि परगत जानी । चार अनन्त चतुष्टय ज्ञानी ।। -श्री देवपूजा, धानतराय, बृहज्जिनवाणी सग्रह, पृष्ठ ३०३ । २. करि चारिय घातिय घात जब, लहि नंत चतुष्टय पट्ट तबै । दर्शन अरू ज्ञान सुसौख्य बलं, इन चारहु ते तुव देव अलं ॥ -श्री सुमति नाथ जिनपूजा, मनरंगलाल, पं० शिखर चन्द्र शास्त्री, जवाहर गज, जबलपुर, म० प्र० चतुर्थ संस्करण १६५०, पृष्ठ ४५ । ३. अनन्त चतुष्टय के धनी, छियालीस गुण युक्त। नमहु त्रियोग सम्हार के अर्हन जीवन्मुक्त । -श्री पंचपरमेष्ठी पूजा, सच्चिदानन्द, नित्य नियम विशेष पूजन संग्रह, दि. जंन उदासीन आश्रम, ईसरी बाजार, हजारीबाग, वीर सं० २४८७, पृष्ठ ३१ । ४. हे अनन्त चतुष्टय युक्त स्वाम, पायो सब सुखद सयोग ठाम ॥ -श्री चम्पापुर सिद्ध क्षेत्र पूजा, दौलतराम, श्री जैन पूजापाठ संग्रह, ६२ नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ १४० । ५. असहायं स्वरूपोत्प निरावरणम क्रमम् । घाति कर्म क्षयोत्पन्न केवलं सर्वभावगम् ।। ~ तत्वार्थसार, प्रथम अधिकार, श्री अमृतचन्द्रसूरी, श्री गणेशप्रसाद वर्णी ग्रन्थमाला, डुमराव बाग, अस्सी, वाराणसी ५, प्रथम संस्करण सन् १६७०, पृष्ठ १५।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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