SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २७ ) सिद्ध परमेष्ठी सम्पूर्ण द्रव्यों व उनकी पर्यायों से भरे हुए सम्पूर्ण जगत् को 'तीनों कालों में जानते हैं तो भी वे मोह रहित ही रहते हैं। स्वयं उत्पन्न हुए ज्ञान और दर्शन से यु भगवान् देवलोक और असुरलोक के साथ मनुष्य लोक की अनति, गति, चयन, उपपाद, बन्ध, मोक्ष, ऋद्धि, स्थिति, युति, अनुभाग, तर्क, कल, मन, मानसिक, भुक्त, कृत, प्रतिसेवित आदि कर्म, अरहः कर्म, सब लोकों, सब जीवों और सब भावों को सम्यक् प्रकार से युगपत् जानते हैं, देखते हैं और बिहार करते हैं ।" जैन- हिन्दी-पूजा - काव्य में केवलज्ञान शब्द की विशद व्याख्या हुई है। केवल ज्ञान प्राप्त किये बिना किसी भी प्राणी को मोक्ष प्राप्त करना सुगम - सम्भव नहीं है । कविवर द्यानतराय 'श्री बृहत् सिद्धचक् पूजा भाषा' नामक काव्य में स्पष्ट करते हैं कि ज्ञानवरणी कर्म के पूर्णतः क्षय हो जाने पर ही केवलज्ञान प्रकट हो पाता है । पूजक केवल ज्ञानी सिद्ध भगवान की पूजा करता है ।" मन, वचन, कर्म से उन्नीसवीं शती के कविवर बख्तावररत्न ने 'श्री विमलनाथ जिनपूजा' नामक काव्य में भगवान द्वारा केवलज्ञान प्राप्त करने की चर्चा की है । केवल ज्ञान प्राप्त करने के उपरान्त ही भगवान् कल्याणकारी उपदेश देते हैं फलस्वरूप अनेक प्राणी कल्याण को प्राप्त हुए हैं।" इसी प्रकार कविकृत 'श्री कुन्थुनाथ जिनपूजा' में केवल ज्ञान प्राप्त करने पर ही प्रभु द्वारा जनकल्याणकारी उपदेश दिए जाने का उल्लेख है। कविवर रामचन्द्रकृत १. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग २, क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन. नई दिल्ली, प्रथम संस्करण सन् १९७१, पृष्ठ १४७ । २. ज्ञानावरणी पंच हत्, प्रकट्यो केवल ज्ञान । गुणखान ॥ द्यात मनवच काय सों, नमों सिद्ध -श्री वृहत सिद्धचक्र पूजा भाषा, द्यानतराय, श्री जैन पूजा पाठ संग्रह, ६२ नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ २३७ । ३. पायो केवल ज्ञान, दीनो उपदेश भव्य बहु तारे । शिखर समेद महानं, पाई शिव सिद्ध अष्ट गुण धारे ॥ - श्री विमलनाथ जिनपूजा बख्तावररत्न, वीर पुस्तक भण्डार, मनिहारों का रास्ता, जयपुर, सं० २०१८, पृष्ठ ६३ । ४ चैत उजियारी दुतिया जु हैं, जिन सुपायो केवल ज्ञान है । सभा द्वादश में वृष भाषियों, भव्य जन सुन के रस चाखियो || - श्री कुन्थुनाथ जिनपूजा, पंचकल्याणक बख्तावर रत्न, वीर पुस्तक भंडार, मनिहारों का रास्ता, जयपुर, सं० २०१८, पृष्ठ ११४ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy