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________________ १६ बन्दन कर बहु आनन्द पाम । ( २५२ ) २० -- सोनागिरि के शीश पर बहुत जिनालय जान । (श्री सोनागिरि सिद्धक्षेत्र पूजा, आशाराम ) ( श्री गिरनार सिद्ध क्षेत्रपूजा, रामचन्द्र ) अति १८- पुम्मी बट ऋतु के सुख भोगे, पापी महादुःखो अति रोवे । ( श्री बृहत् सिद्धचक्र पूजाभाषा, खानतराय) १६-- अति धवल अक्षत खंड-वजित, मिष्ठ राजन भोग के । (श्री सप्तर्षि पूजा, मनरंगलाल ) २०- अति मधुर लखावन, परम सु पावन. तृषा बुझावन गुण भारी । ( श्री अकृत्रिम चैत्यालय पूजा, नेम ) www.shop अल्प १८ -- भिन्न भिन्न कहूं आरती, अल्प सुगुण विस्तार | (श्री देवशास्त्र गुरुपूजा, खानतराय) १६- में अल्प बुद्धि जयमाल गाय, भवि जीव शुद्ध लोज्यो बनाय | (श्री गिरनार सिद्ध क्षेत्र पूजा, रामचन्द्र ) २०-- मैं मति अल्प अज्ञान हो, कौन करे विस्तार | (श्री आदिनाथ जिनपूजा, सेवक ) अधिक १८. आठों बरब संवार, बानत अधिक उछाहसों । - २०. वणि 'बोल' सौ पाय हो, सुखसम्पति अधिकाय । स्थानवाचक अव्यय तहाँ १८. तेतिस सागर तहाँ रहे हैं। (श्री दशलक्षण धर्मपूजा, द्यानतराय) (श्री चम्पापुर सिद्धचक्र पूजा, दौलतराम ) (श्री बृहत् सिaas पूजा भाषा, खानतराय) ( भी शांतिनाथ जिनपूजा, वृन्दावन) १६. सुर लेत तहाँ आनन्द संग ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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