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________________ ( २५१ ) २०--मन व तम सों शुद्ध कर, अब वरणों जयमाल । ( भी तीस चोबीसी पूजा, रविमल ) जब १८- मिथ्या जुरी उर्व अब आगे, धर्म मधुर रस मूल न आवे । ( श्री बृहत्सिद्ध वक्र पूजा भाषा, थानतराय) १६ - हाथ चार जब भूमि निहारें । २० जब चौथी काल लगं जु आय । ( श्री क्षमा वाणी पूजा, मल्लजी) - २० (श्री तीस चोबीस पूजा, रविमल ) सवा १८ -- खानत सिद्ध नमों सदा, अमल अचल चिडूप । (श्री बृहत् सिद्धचक्र पूजाभाषा, धानसराय) १६- शान्ति शान्ति गुन-मंडिते सदा, जाहि ध्यावते सुपंडिते सदा । ( श्री शान्तिनाथ जिन्पूजा, वृंदावन) बाल ब्रह्मचारी जगतारी सदा विराग सरूप । (श्री नेमिनाथ जिनपूजा, जिनेश्वरदास) तब 1 १६- पंचम अंग उपधान बतार्थ पाठ सहित तब बहु फल पावें । (श्री क्षमावाणी पूजा, मल्लजी) २० - अतएव मुके तब चरणों में, जग के माणिक मोती सारे । (श्री देवशास्त्र गुरुपूजा, युगल किशोर 'युगल') १६- जय चन्द्र वंदन राजीव नैन, कबहूँ विकथा बोलत न बैन । ( भी सप्तष पूजा, मनरंगलाल ) २० - कबहूँ इतर निगोह में मोकू पटकत करत अचेत हो । (श्री आदिनाथ जिनपूजा, सेवक ) परिणाम वाचक अव्यय -- बहुत १६- आवर ते बहु आदर पाये, उदय अनश्वर ते न सुहावे । (श्री बृहत्सद्धचक्र पूजाभाचा, बानसराय )
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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