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________________ ( २५३ ) २०. तहाँ चौबीसी तीन बिराजे आगत नागत अरु वर्तमान | जहाँ १८. पांचों भाव जहाँ नहि लहिये, निश्चै अन्तराव सो कहिये । (श्री बृहत् सिद्ध व पूजाभाषा, ज्ञानतराय) १६. तित बन्यो जहाँ सुरगिरि विराट । २०. जहाँ धर्मनाम नह सुने कोय । (श्री तोस चौबीसी पूजा, रविमल) ( श्री शांतिनाथ जिनपूजा, वृन्दावन) ॐ चा १८. ऊंचा जोजन सहस, छतींसं पांडुकवन सोहैं गिरिसीसं । (श्री तीस चोबोसो पूजा, रविमल ) २०. जैसे निसर जन्ती में तार हो । २०. श्याम शरीर धनुष दश ऊंचो शंख चिन्ह पनमांहि । (श्री पंचमेद पूजा, खानतराय) २०. तेसो ही ऐरावत रसाल । ( श्री नेमिनाथ जिनपूजा, जिनेश्वरदास) गुणवाचक अव्यय - जैसा १८. मुख करें जैसा लबं तैसा, कपट-प्रीति अंगारसी । (श्री दशलक्षणधर्मपूजा, द्यानतराय) ( श्री आदिनाथ जिनपूजा, सेवक ) तैसा -- १८. तैसे वरशन आवरण, देख न देई सुजान - ( श्री बृहत् सिद्धचक्र पूजा भाषा, खानतराय) (श्री तीस चोबीसी पूजा, रविमल) ऐसे - १६. ऐसो क्षेत्र महान तिहि, पूजों मन बच काय । ( श्री गिरनार सिद्धक्षेत्र पूजा, रामचन्द्र ) २०. ऐसे अक्षत सौ प्रभु पूजों जगजीवन मन मोहे । ( भी चन्द्रप्रभु पूजा, जिनेश्वर बास)
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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