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________________ ( १८३ ) राम को 'श्री चम्पापुर सिद्ध क्षेत्रपूजा", कुबिलाल को 'भो देवमास्थ गुल्जा " और युगल किशोर 'युगल की 'श्री देवशास्त्र गुरुपूजा' नामक पूजा काव्य कृतियों में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार के अभिदर्शन इस प्रकार यह सहज में कहा जा सकता है कि इन जैन-हिन्दी-पूजाकाव्य के रचयिताओं को पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार को गहीत करने में वस्तुतः दो तथ्यों की अपेक्षा रहा, यथा (१) काच्याभिव्यक्ति में अधिक प्रभावना उत्पन्न करने की दृष्टि से । (२) काव्य में संगीत और लयप्रियता के सफल संचरण के उद्देश्य से इस अलकार का पूजा काव्यों में व्यवहार हुआ है। इस दृष्टि से कविवर व्यानतराय और कविवर वृदावन द्वारा रचित पूजा काध्य कृतियों में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का व्यवहार वस्तुतः उल्लेखनीय यमक जन-हिन्दी-पूजा काव्य में यमक अलंकार का व्यवहार उन्नीसवीं शती । १. मोलह वसु इक इक षट इकेय, इक इक इक इम इन क्रम सहेय । -श्री चम्पापुर सिद्ध क्षेत्र पूजा, दौलतराम, संगृहीतग्रंथ-जैन पूजापाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ १४०। भर भर के थाल चढ़ाऊँ चरणन में, मेरा क्षुधा रोग मिटाले । श्रीदेवशास्त्र गुरु पूजा, कुजिलाल, संगृहीतग्रथ-नित्य नियम विशेष पूजन संग्रह, सम्पादक व प्रकाशक-७० पतासी बाई जैन, ईसरी बाजार, (हजारी बाग), पृष्ठ ११४ । ३. युग-युग से इच्छा मागर में, प्रभु गोते खाता आया हूँ। -श्री देवशास्त्र गुरु पूजा, युगल किशोर 'युगल' संगृहीत प्रथ-राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, प्रकाशक-राजेन्द्र मैटिल वर्क्स, हरि नगर, अलीगढ़, १६७६, पृष्ठ ४८ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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