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________________ ( १८२ ) उन्नीसवीं शताग्दि में पूजा काट्य के कवियों ने पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का व्यवहार काव्य में भावोत्कर्ष के अतिरिक्त उसमें स्वन्यात्मकता का सफलतापूर्वक संचार किया है। कविवर साधन कृत काव्य में पुनरुक्ति प्रकाश का प्रयोग अपेक्षा कृत अधिक हुआ है । लय और ध्वन्यात्मकता उत्पन्न करने के लिए कवि ने इस अलंकार को गृहीत किया है। भावोत्कर्ष में इस प्रकार के प्रयोग वस्तुत: उल्लेखनीय हैं। 'श्री महावीर स्वामी पूजा में कवि ने 'मननं', 'सननं' इत्यादि शब्दों को आवृत्ति में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार के अभिनव प्रयोग में दर्शन होते हैं । इसके अतिरिक्त वृदावन की अन्य कृति 'श्री शांतिनाथ जिनपूजा'२ में, कमलनयन की 'श्री पंचकल्याणक पूजापाठ" में, मनरंगलाल की 'श्री शीतलनाय जिनपूजा' नामक पूजा रचनाओं में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का व्यवहार द्रष्टव्य है । बीसवीं शती के कवि सेवक की 'श्री आदिनाथ जिनपूजा,५ , दौलत १-सननं सनन सननं नभ मे, एक रूप अनेक जु धार भ्रमै । -श्री महावीर स्वामी पूजा, बृन्दावन, संगृहीत ग्रय - राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मैटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ, १९७६, पृष्ठ १३८ । २. सेवक अपनी निज आन जान, कहना करि भी भय भान भान । --श्री शांतिनाथ जिनपूजा, वदावन, सग्रहीत मथ-राजे नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मैटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, १९८६, पृष्ठ ११६ । ३. जुगपद नमि नमि जय जय उचारि । -~श्री पंचकल्याणक पूजा पाठ, कमल नयन, हस्तलिखित । ४. धन्य तू धन्य तू धन्य तू मैं नहा । -~-श्री शीतलनाथ जिनपूजा, मनरंगलाल, संगृहीतग्रन्थ-राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मैटिल वर्क्स, हरिनगर, अलीगढ़, १६०६, पृष्ठ १०२। जगमग जगमग होत दशों दिशि ज्योति रही मंदिर में छाय । श्री आदिनाथ जिनपूजा, सेवक, संगृहीत प्रथ-जन पूजापाठ संग्रह, भागचन्द्र पाटनी, नं. ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७ पृष्ठ १४० ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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