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________________ ( १२५ ) सारे ही देश घारें जिनवर वृषको जो सदा सौख्यकारी ॥' यहाँ तक पाठ करने पर पुष्पों को समाप्त कर लेना चाहिए - यथा धातिकर्म जिन नाश करि पायो केवलराज । शांति करो सब जगत में वृवभाविक जिनराज || " तब जल और चन्दन को उठाकर पात्र में दोनों की धार मिलाकर तीन बार में समाप्त कर देना चाहिए और अन्त में 1 शास्त्रों का हो पठन सुखदा लाभ सत्संगतीका । सबूतों का सुजस कहके दोष ढाकू सभी का || बोलू प्यारे वचन हित के आपका रूप ध्याऊं । तो लों सेऊं चरण जिनके मोक्ष जो लों न पाऊं ॥ तब पक्ष मेरे हिय में ममहिय तेरे पुनीत चरणों में । सब लों लीन रहो प्रभु जब लों पाया न मुक्तिपद मैंने ॥ अक्षर पद मात्रा से दूषित जो कुछ कहा गया मुझसे । क्षमा करो प्रभु सो सब करुणा करि पुनि छुड़ाह भव दुखसे ।। हे जगबन्धु जिनेश्वर । पार्क तब चरण शरण बलिहारी । मरण समाधि सुदुर्लभ कर्मों का क्षय सुबोध सुखकारी ॥ पढ़कर पुष्प चढ़ाना चाहिए, तत्पश्चात नौ बार णमोकार मंत्र पढ़ना चाहिए । विसर्जन पाठ बिन जाने वा जानके, रही टूट जो कोय । तुव प्रसाद तें परमगुरु, सो सब पूरण होय ॥ पूजनविधि जानों नहीं, नहि जानों आह्वान | और बिसर्जन हू नहीं, क्षमा करहु भगवान | 4-2 १. ज्ञानपीठ पूजांजलि, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, बनारस, प्रथम संस्करण १६५७ ई०, पृष्ठ १२७-१२८ । २. वही, पृष्ठ १२५ । ३. वही, पृष्ठ १२८ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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